श्री दिव्यांशु शेखर
(युवा साहित्यकार श्री दिव्यांशु शेखर जी ने बिहार के सुपौल में अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण की। आप मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। जब आप ग्यारहवीं कक्षा में थे, तब से ही आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया था। आपका प्रथम काव्य संग्रह “जिंदगी – एक चलचित्र” मई 2017 में प्रकाशित हुआ एवं प्रथम अङ्ग्रेज़ी उपन्यास “Too Close – Too Far” दिसंबर 2018 में प्रकाशित हुआ। ये पुस्तकें सभी प्रमुख ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक सार्थक कविता “लॉकडाउन विशेष – खुली खिड़की से” )
☆ लॉकडाउन विशेष – खुली खिड़की से ☆
मैं देखता हूँ जब आज खुली खिड़की से,
कई नज़ारे अब बंद दिखते हैं,
बेबाक कदमें अब चंद दिखते हैं,
सड़कों पे फैला हुआ लबों के हँसी की मायूसी,
बीते कल के शोर की एक अजीब सी ख़ामोशी।
मैं सुनता हूँ जब आज खुली खिड़की से,
ना होती वाहनों के शोर की वो घबराहट,
ना पाता किसी अपने ख़ास के कदमों की आहट,
रँगीन गली में अब पदचिन्हों की दुःखभरी कथा,
किनारे खड़े खंभे से आती प्रकाश की अपनी व्यथा।
मैं बोलता हूँ जब आज खुली खिड़की से,
कई चीजों के मायनें कैसे बदल रहे,
तो कई रिश्ते बंद कमरों में कैसे मचल रहे,
कोई खुद के प्यार में पड़ वर्तमान में कैसे खो रहा,
तो आज भी भविष्य तो कोई बीते कल की मूर्खता में रो रहा।
मैं सोचता हूँ जब आज खुली खिड़की से,
क्या होगा जब वापस सब पहले जैसा शुरू होगा,
कैसा लगेगा जब दिल आजादी से पुनः रूबरू होगा,
सूरज की चमक से तन कैसे पसीने से भींगेगा,
हवा के थपेड़ों से मन कैसे दीवानों की तरह झूमेगा।
मैं लिखता हूँ जब आज खुली खिड़की से,
कई लोग कल दोबारा हाथों को कसकर थामे कैसे खुशी से गायेंगे,
तो कैसे मतलब के कुछ रिश्ते आँखों में आँसू छोड़ जायेंगे,
जब खिड़कियों के जगह दरवाजें खुलेंगे तो वो कितना सच्चा होगा,
जब वापस कई बिछड़े दिल मिलेंगे तो वाकई कितना अच्छा होगा।
© दिव्यांशु शेखर
कोलकाता
शानदार। ऐसे ही अच्छी कविताएं लिखते रहे।???