डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )

 ✍  लेखनी सुमित्र की – दोहे  ✍

मात्र छुअन की महक से, महक रहा है गात।

बेला फूले रात को, सूरजमुखी  प्रभात ।।

 

वृंदावन – सा मन मिला, सांसे जमुना नीर।

सम्मुख रूपम राधिका, उड़ता संयम चीर।।

 

तिष्यरक्षिता की तरह, चली जगत ने चाल।

नेत्रहीन ‘इच्छा ‘ हुई, जैसे धीर कुणाल ।।

 

मन में उपजी वासना, जो  सकत है रोक।

कालांतर में स्यात वह,  हो सम्राट अशोक।।

 

पारिजात विद्योत्तमा, कालिदास वन गंध ।

हो दोनों का मिलन जब, मिटे द्वैत की धुंध।।

 

बाहर खिल खिल निर्झरी, भीतर झरते नैन ।

विकल प्रतीक्षित हृदय को, हर क्षण काली रैन।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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डॉ भावना शुक्ल

शानदार अभिव्यक्ति

Dr Kamna tiwari shrivastava

वाह आपका ज़बाब नहीं ….