डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम दोहे । )
लेखनी सुमित्र की – दोहे
कभी विहंसती सी लगे, कभी खिले मुस्कान।
मुख मंडल मुझको प्रिये, लगता जलज समान।।
गोधूली में दृष्टिगत, होता चारु स्वरूप।
कभी झलकती राधिका,कभी कृष्ण का रूप।।
वृंदावन उच्चारते, सजलित होते प्राण।
युग से प्यासी दृष्टि को, यही मिलेगा त्राण।।
वह शब्दों की माधुरी, वह आंगिक संवाद।
अपने को भूला मगर, सिर्फ वही है याद।।
किशमिश रंगी रूप का, चखा चक्षु ने स्वाद।
तृप्ति कपूरी जो मिली, अब तक है वह याद।।
प्राण प्रिया की याद में, व्याकुल है मन-मीन।
कितना धौंऊं नयन पट, अब भी बहुत मलीन।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
शानदार अभिव्यक्ति
वाह क्या बात