हेमन्त बावनकर
☆ शब्द मेरे अर्थ तुम्हारे – 7 ☆ हेमन्त बावनकर☆
☆ तात्पर्य ☆
शब्दकोश तो वही है
फिर
मेरे शब्द इतने कोमल
किन्तु,
तुम्हारे शब्द
इतने कठोर क्यों हैं?
मेरे शब्दों का तात्पर्य तो
मानवता से था
किन्तु,
तुमने उसमें भी
अमानवीयता ढूंढ लिया?
मेरे शब्दों का तात्पर्य तो
नया इतिहास रचने से था
किन्तु,
तुमने तो इतिहास ही बदल दिया?
मेरे शब्दों का तात्पर्य तो
अपने सृजन को अपना नाम देने से है
किन्तु,
तुमने तो अन्य के सृजन को
अपना नाम/नया नाम ही दे दिया।
मेरे शब्दों का तात्पर्य तो
शब्दों के तात्पर्य से है
सत्य, अहिंसा, प्रेम से है
वसुधैव कुटुंबकम से है
सार्वभौमिकता से है
किन्तु,
तुमने तो संकीर्ण विचारधारा ही थोप दी।
© हेमन्त बावनकर
पुणे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
उत्तम अभिव्यक्ति है।
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सशक्त अभिव्यक्ति सर, हार्दिक बधाई
हेमंत भाई, बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण, अभिव्यक्ति, बधाई
बेहतरीन अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर रचना
सारगर्भित रचना।