श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 42 ☆
☆ उदास जिंदगी ☆
☆
ना जाने क्यों आज दिल बहुत उदास है,
किसी नदी किनारे पेड़ की छांव में,
बैठ कर रोने को मन कर रहा है ||
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थक गया पहाड़ सी जिंदगी को ढ़ोते-ढ़ोते,
खुद को भूल गया बोझ के तले दब कर,
आज खुद को ढूंढने का मन कर रहा है ||
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कितनी उतार-चढ़ाव भरी है जिंदगी,
दुर्गम रास्तों पर चलते हुए अब थक गया हूँ,
जिस्म भी साथ छोड़ने को आतुर हो रहा है ||
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कितनी शांत एक लय में बह रही है नदी,
उलझन भरी इस जिंदगी में,
मेरा मन अशांत सा बह रहा है ||
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क्या खोया क्या पाया, लेखा जीवन का देखा,
पाया तो थोड़ा कुछ और खोया सब कुछ,
खाता बही में शून्य ही बचा पाया हूँ ||
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ना जिंदगी से गिला है ना अपनों से शिकवा,
मैं भी रिश्तों के जुर्म में,
बराबरी की भागीदारी निभा आया हूँ ||
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अब जिंदगी में रखा भी क्या है?
कुछ रिश्तें मुझे भूल गए,
कुछ रिश्तों को में भूल आया हूँ ||
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© प्रह्लाद नारायण माथुर
बहुत बढ़िया