प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ सरिता के छंद ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
(1)
सरिता बहे जगत के हित में,सबको नीर दे।
खेत सींचती,मंगल करती,सबकी पीर ले।।
सरिता अपना धर्म निभाती,बहती ही रहे।
कोई कितना कर दे मैला,सहती ही रहे।।
(2)
हर सरिता गंगा सी पावन,इतना जान लो।
हर सरिता पूजित,मनभावन,यह तो मान लो।।
सरिता है भगवान की रचना,जिसमें ताप है।
कितना उपकृत करती हमको,कभी न माप है।।
(3)
सरिता युग-युग से धरती पर,जीवनदायिनी।
शुभ-मंगल के गीत सुनाती,पुण्यप्रदायिनी।।
गंगा-यमुना सी हर सरिता,प्रमुदित भावना।
रोग,शोक,संताप हरे जो,पुलकित कामना।।
(4)
जल पूजित,सरिता भी पूजित,पूरण आस है।
पापहारिणी,शापनाशिनी,सुख का वास है।।
हर मौसम,हर विपदा में भी,जग है मानता।
तेरा जल मानो अमरत है,पूजा ठानता।।
(5)
पर्वत से तू बहकर आती,हित को साधती।
दुनिया सारी,तुझको माने,आशा बाँधती।।
सरिता ने नित धर्म सँवारा,जय-जय देविका।
यहाँ आज जल के पूजक सब,सेवी-सेविका।।
© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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