सौ. वृंदा गंभीर
☆ कविता – सवाल तो बहुत हैं ☆ सौ. वृंदा गंभीर ☆
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क्या लाजवान फर्माईश थी
आप कि जनाब
हम तो घायल हो गये
प्यार की ये किताब
हम पढते रहे।
*
सवाल तो बहुत हैं
जवाब अभी तक मिला नहीं
दिल तो पागल है
मन को भाया नहीं
*
मुहब्बत की रफ्तार तेज है
रास्ता मिला नहीं
आप कि यादों में
रात भर हम सोये नहीं
*
कुछ दीवानापन है
कुछ नादानी है
मन कहता है उमर हो गई
अब तो जवानी भी नहीं
– दत्तकन्या
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सौ. वृंदा गंभीर
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈