डॉ प्रेरणा उबाळे

☆ कविता – सीखा मैंने…  ☆  डॉ प्रेरणा उबाळे 

संवरना सीखा

संभलना सीखा

गिराए कोई

उठना सीखा

 

घुप्प अंधेरे में

जुगनू से

राह खोजना सीखा

काले समंदर के

सफेद मोतियों से

माला पिरोना सीखा l

 

उड़नतश्तरी से

प्यारी हमारी कश्ती 

कश्ती को

तूफान में

चलाना सीखा

 

हवा के साथ

रंगीनियों में

किसी को जब

उड़ते देखा l

ठोकरों के साथ

सीधे रास्ते पर

किसी को जब

चलते हुए भी देखा

इसीलिए हमने

जमीन से

नाता जोड़ना सीखा

गहराई में

गोता लगाना सीखा

ज्ञानसागर में

डूबना सीखा

भवसागर में

तैरना सीखा 

 

हृदय के शूल को

सहकर

गोकुल के कान्हा-सा

प्रेम बाँटना सीखा

दुनिया की हँसी को

पचाकर

मथुरा के श्रीकृष्ण-सा

सुदर्शन चलाना सीखा  

 

संवरना सीखा

संभलना सीखा

गिराए कोई

उठना सीखा l

■□■□■

© डॉ प्रेरणा उबाळे

12 सितंबर 2024

सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभागाध्यक्षा, मॉडर्न कला, विज्ञान और वाणिज्य महाविद्यालय (स्वायत्त), शिवाजीनगर,  पुणे ०५

संपर्क – 7028525378 / [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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