श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज आपके “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है आपकी एक अत्यंत भावप्रवण एवं परिकल्पनाओं से परिपूर्ण रचना – प्यारी कविता। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – प्यारी कविता ☆
मृगनयनी से नयनां कजरारे,
तेरी मदभरी आंखों की चितवन ।
तेरी पायल की रूनक झुनक,
अब मोह रही है मेरा मन।
तेरे अधरो की हल्की लाली,
चिटकी गुलाब की कलियों सी।
तेरी जुल्फों का रंग देख,
भ्रम होता काली रातों की।
तेरा मरमरी बदन छूकर ,
मदमस्त हवा में होती है।
जिन राहों से गुजरती हो तुम,
अब वे राहें महका करती हैं।
तुम जिस महफ़िल से गुजरती हो,
सबको दीवाना करती हों
पर तुम तो प्यारी कविता हो,
बस प्यार मुझी से करती हो ।।1।।
तुम मेरे सपनों की शहजादी,
मेरी कल्पना से सुंदर हो ।
ना तुमको देख सके कोइ,
तुम मेरी स्मृतियों के भीतर हो ।
मैंने तुमको इतना चाहा,
मजनूं फरहाद से भी बढ़कर।
तुम मेरी जुबां से बोल पड़ी,
मेरे दिल की चाहत बन कर।
तुम कल्पना मेरे मन की हो ,
एहसास मेरे जीवन की हो।
तुम संगीतों का गीत भी हो ,
तुम मेरे मन का मीत भी हो
तुम मेरी अभिलाषा हो,
मेरी जीवन परिभाषा हो ।
अब मेरा अरमान हो तुम ,
मेरी पूजा और ध्यान हो तुम।
मैं शरीर तुम आत्मा हो ,
मेरे ख्यालों का दर्पण हो।
अब तो मैंने संकल्प लिया,
ये जीवन धन तुमको अर्पण हो
जब कभी भी तुमको याद किया,
तुम पास मेरे आ जाती हो ।
मेरे सूने निराश मन को,
जीवन संगीत सुनाती हो
मैं राहें तकता रहता हूं,
अपने आंखों के झरोखों से ।
तुम हिय में मेरे समाती हो,
शब्दों संग हौले हौले से
जब याद तुम्हारी आती है,
कल्पना लोक में खोता हू
शब्दों भावों के गहनों से,
मै तेरा बदन पिरोता हूं।
तुम जब जब आती हो ख्यालों में,
तब मन में मेरे मचलती हो ।
शब्दों का प्यारा रूप पकड़,
लेखनी से मेरी निकलती हो,
चलो आज बता दें दुनिया को,
तुम मेरी प्यारी कविता हो मेरी प्यारी कविता हो।।
© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208
मोबा—6387407266