प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
(प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। म.प्र.साहित्य अकादमी के अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार से पुरस्कृत प्रो शरद नारायण खरे जी का हिंदी साहित्य में विशेष स्थान है। आप वर्तमान में शासकीय महिला महाविद्यालय, मंडला (म.प्र.) में प्राध्यापक/प्रभारी प्राचार्य हैं। कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत। इसके पूर्व कि मुझसे कुछ छूट जाए आपसे विनम्र अनुरोध है कि कृपया प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे जी की संक्षिप्त साहित्यिक यात्रा की जानकारी के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें –
जीवन परिचय – प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
आज प्रस्तुत है आपका एक समकालीन गीत – घाव बहुत गहरे हैं !!
☆ समकालीन गीत – घाव बहुत गहरे हैं !! ☆
रोदन करती आज दिशाएं, मौसम पर पहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे हैं वो, घाव बहुत गहरे हैं !!
बढ़ता जाता दर्द नित्य ही,
संतापों का मेला
कहने को है भीड़, हक़ीक़त,
में हर एक अकेला
रौनक तो अब शेष रही ना,बादल भी ठहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे वो, घाव बहुत गहरे हैं !!
मायूसी है,बढ़ी हताशा,
शुष्क हुआ हर मुखड़ा
जिसका भी खींचा नक़ाब,
वह क्रोधित होकर उखड़ा
ग़म,पीड़ा औ’ व्यथा-वेदना के ध्वज नित फहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं !!
व्यवस्थाओं ने हमको लूटा,
कौन सुने फरियादें
रोज़ाना हो रही खोखली,
ईमां की बुनियादें
कौन सुनेगा,किसे सुनाएं, यहां सभी बहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे है वो घाव बहुत गहरे हैं !!
बदल रहीं नित परिभाषाएं,
सबका नव चिंतन है
हर इक की है पृथक मान्यता,
पोषित हुआ पतन है
सूनापन है मातम दिखता, उड़े-उड़े चेहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं !!
© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
विभागाध्यक्ष इतिहास, शासकीय महिला महाविद्यालय, मंडला(म.प्र.)-481661
(मो.-9425484382)
E [email protected]
अच्छी रचना