श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय जी की एक भावप्रवण कविता वंदन है, अभिनंदन है।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – वंदन है, अभिनंदन है ☆
हे भारत मां के लाल तुम्हारा,
वंदन है अभिनंदन है।
तुम महावीर भारत के हो ,
माथे पे रोली चंदन है।
है नाम आपका पदुमदेव,
उज्जवल चरित तुम्हारा है।
अपनी शौर्य वीरता से,
तुमने दुश्मन को मारा है।
उन्नीस सौ पैंसठ के रण में,
जब नांच रहा था महाकाल ।
तब महाकाल बनकर रण में,
शत्रुदल को संहारा है।
अपनी तोपों के गोलों से,
दुश्मन का हौसला तोड़ा था।
दुश्मन पीछे को भाग चला,
तुमने उसका रूख मोड़ा था।
अपने ही रणकौशल से,
रण में तांडव दिखलाया था।
समरजीत बन बीच समर
भारत का तिरंगा लहराया था।
पर दुर्भाग्य साथ में था,
बारूद तुम्हारा खत्म हुआ।
जो साथी रण में घायल थे,
आगे बढ़ उनकी मदद किया ।
प्राणों का संकट था उनके,
उनको संकट से उबारा था।
लाद पीठ पर अस्पताल के,
प्रांगण में तुमने उतारा था ।
इस उत्तम सेवा के बदले,
स्वर्ण पदक ईनाम मिला।
जो उद्देश्य तुम्हारा था,
उसको इक नया मुकाम मिला।
तुम मंगल पाण्डेय के वंशज थे,
वीरता तुम्हारी रग में थी।,
आत्माहुति का इतिहास रहा,
यश कीर्ति सारे जग में थी।
सन उन्नीस सौ इकहत्तर में ,
बैरी फिर सरहद चढ़ आया।
पदुम देव फिर जाग उठा,
दुश्मन को औकात बताया।
एक बार फिर विजय श्री ने,
उनके शौर्य का वरण किया।
दुश्मन का शीष झुका कर के,
उसके अभिमान का हरण किया।
छब्बीस अगस्त सन् सत्तरह में,
सो गया वीर बलिदानी।
कीर्ति अमर हुई उनकी,
लिखी इक नई कहानी।
© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
विशेष – प्रस्तुत आलेख के तथ्यात्मक आधार ज्योतिष शास्त्र की पुस्तकों पंचागों के तथ्य आधारित है भाषा शैली शब्द प्रवाह तथा विचार लेखक के अपने है, तथ्यो तथा शब्दों की त्रुटि संभव है, लेखक किसी भी प्रकार का दावा प्रतिदावा स्वीकार नहीं करता। पाठक स्वविवेक से इस विषय के समर्थन अथवा विरोध के लिए स्वतंत्र हैं, जो उनकी अपनी मान्यताओं तथा समझ पर निर्भर है।
अच्छी रचना