श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता खुली किताब ) 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 13 – खुली किताब

 

जब खुली किताब थी मेरी जिंदगी,

तब किसी ने पढ़ी नही, सब जिंदगी के अनचाहे पन्ने ही पढ़ते रहे ||

 

दुनिया मुझे गुनाहगार ठहराती रही,

मेरे लफ्ज़ मेरी बेगुनाही की कहानी चीख़-चीख़ कर कहते रहे ||

 

किसी ने मेरी आवाज सुनी नहीं,

सब मेरी जिंदगी की किताब को रद्दी समझ इधर-उधर पटकते रहे ||

 

आज जब जिंदगी की किताब पूरी हो गयी,

सब लोग आज मेरी जिंदगी के सुनहरे पन्नों के कसीदे पड़ने लगे ||

 

कल तक जो मुझे देखना पसन्द नहीं करते थे,

वे आज मेरी जिंदगी की किताब के पन्ने पलट-पलट कर रोने लगे ||

 

कल तक जो मुझ पर थूकना पसन्द नही करते थे,

वे ही आज मेरी लाश पर सर पटक-पटक कर बेतहाशा रोने लगे ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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