श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है काशी निवासी लेखक श्री सूबेदार पाण्डेय जी द्वारा रचित दीप पर्व पर विशेष रचना “दीपोत्सव”। )
साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – दीपोत्सव ☆
इन दुख की काली रातों में, दीपों से धरा सजाना है।
कोई कोना छूटे ना, इस तम को हमें ही मिटाना है।
तन मन आलोकित कर,जग आलोकित कर जाना है।
जो अंधेरों में मन मारे बैठे हैं, आस का दीप जलाना है।।१।।
इन दुःख।।
जीवन की अंधेरी राहों में, कांटों के ऊपर चलना है।
उम्मीदों का दीप जला कर, खतरे से बच निकलना है ।
ना ठोकर खाये कोई राह में ,दीपक बाती सा जलना है।
कर्मों के पथ आलोकित हो, जग में उजाला करना है।।२।।
इन दुख की।।
नीले अंबर की छांव में, दुख से कातर हर गांव में।
बांधे घुंघरू पांवों में, झम झम कर नाच दिखाना है ।
ना दुखिया हो जीवन में कोई, खुशियों के गीत सुनाना है।
हर तरफ खुशी के रेले हो, हर दिल का साज बजाना है।।३।।
इन दुख की।।
खेतों में खलिहानों में, झोपड़ियों महलों के कंगूरों पे।
हर मंदिरों के कलशों पे, हर मस्जिद की मीनारों पे।
हर तरफ रोशनी फैली हो, दीपों से टिम टिम लड़ियों में।
कहीं भी अंधेरे ना रह ना पायें, चर्चों और गुरूद्वारों में ।।४।।
इन दुःख।।
हर तरफ खुशी के मंजर हो,ना जंग में गम का अंधेरा हो।
आशा की किरणें फूट पड़े, हर जीवन में नया सबेरा हो।
आओ मिलकर खुशियां बांटें, सहस दें सबको बधाई हो।।५।।
इन दुःख की।।
© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈