श्री प्रहलाद नारायण माथुर
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 24 ☆देश के जांबाज सैनिकों की शहादत को समर्पित ☆
उस माँ को नमन है जो सारे कष्ट पाकर पुत्र को जन्म देती है,
जान का खतरा जानते हुए भी उसे देश की सीमा पर भेजती है,
माँ ने उसके लिए जो सुनहरे सपने देखे वो कभी पूरे नहीं हो पायेंगे ||
उस माँ के आगे नतमस्तक हूँ जो उसे शहीद होते अपनी आँखों से देखती है,
नम आँखों से उसे विदा करती है जो फिर कभी वापिस नहीं आएंगे ||
उस स्त्री को नमन है जो सब जानते हुए भी उसकी अर्धागिनी बन जाती है,
और भरी जवानी में पति के शहीद होने पर विधवा हो जाती है,
उसने पति संग जो सुहावने सपने देखे वो अब कभी पुरे नहीं पायेंगे ||
उस पत्नी के आगे नतमस्तक हूँ जो पति की शहादत अपनी आँखों से देखती है,
नम आँखों से उसे विदा करती है जो फिर कभी वापिस नहीं आएंगे ||
उन बच्चों को नमन है जो नन्ही आँखों से पिता की अर्थी उठते देखते हैं,
और अपने नन्हे कोमल हाथों से अपने पिता की चिता को अग्नि देते हैं,
पिता ने बच्चों के लिए जो सपने देखे वो अब कभी पूरे नहीं पायेंगे ||
इन बच्चों के आगे नतमस्तक हूँ जो पिता की मृत देह अपनी आँखों से देखते हैं,
इस बात से अनजान हो विदा देते हैं की ये कभी वापिस नहीं आएंगे ||
© प्रह्लाद नारायण माथुर