हेमन्त बावनकर

(आज प्रस्तुत है गुरु माँ  (कथाकार एवं कवयित्री  स्मृतिशेष डॉ गायत्री तिवारी जी ) के आठवें जन्म स्मृति  के अवसर पर उनकी कृति ‘जागती  रहे नदी ‘ के भावानुवाद  ‘Let  the River Awake’ के समय  प्रेरणा स्वरूप रचित रचना।)

महाकवि आचार्य भगवत दुबे

(आज पाथेय साहित्य एवं कला अकादमी द्वारा जबलपुर में आयोजित डॉ गायत्री तिवारी स्मृति वैचारिक संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह में अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त साहित्य मनीषी, महाकवि आचार्य भगवत दुबे जी की सृजन साधना का स्तवन किया जाएगा।  ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से महाकवि आचार्य भगवत दुबे जी के अभिनंदन हेतु हार्दिक शुभकामनाएं।)

जागती रहे नदी  
 

(स्वर्गीय डॉ॰ गायत्री तिवारी जी की कृति ‘जागती रहे नदी’ से प्रेरित रचना।)

जाग ही तो रही है नदी।

 

हर्ष से हर्षित

प्रियतम प्रियम

मोहिनी सी आभा

ऊपर से शांत

अंतःस्थल

उतना ही अशांत।

जाग ही तो रही है नदी।

 

धीर गंभीर

बहती हुई नदी का

चारु-चिंतन,

यादों के नागपाश।

भावना और कामना

के तटों पर

संभावना की फसल।

जाग ही तो रही है नदी।

 

पथ पर अविरल

पाथेय अनुरूप लय

नियति है

अथाह समुद्र में विलय।

फिर भी सारे पथ

जाग ही तो रही है नदी।

 

किन्तु,

कैसे कर सकती है

विस्मृत

पथ – पाथेय

मित्र – सुमित्र’

दोनों तटों को दे पारस स्पर्श

बहती रहती है अविरल।

जाग ही तो रही है नदी।

 

एक-एक कर

एक-एक पावन तट पर

छूटते जाते हैं पीछे

फिर भी

बहती रहती है नदी

जागती रहती है नदी

जाग ही तो रही है नदी

जागती रहे नदी।

 

© हेमन्त बावनकर

पुणे 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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