डॉ दिवाकर पोखरियाल 

Diwakar Pokhriyal

(अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) पृष्ठभूमि से संबन्धित एवं ऊर्जा (एनर्जी) में पी. एच डी कर चुके डॉ . दिवाकर पोखरियाल का साहित्य एवं गीत-संगीत में रुझान उनकी सर्वांगीण प्रतिभा का परिचायक है। आपकी विशिष्ट साहित्यिक प्रतिभा के कारण आपका नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड्स – 2014 एवं  2017’ में दर्ज है। हम ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को आपसे रूबरू करने में गौरवान्वित अनुभव करते हैं।प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण ग़ज़ल  ‘ कत्ले आम ’ ।)

☆ ग़ज़ल – कत्ले आम ☆

चहु ओर जो देखूं, बस क़त्ले-आम है,

प्यार के बाशिन्दो को मिलते जाम है,

 

सुर्ख अदाओ से चलाते है वो छुरियाँ,

कभी अल्लाह है जिनका, कभी राम है,

 

फैलाते है हैवानियत का डर वो ख़ास,

इंसानियत का खून ही जिनका काम है,

 

नशा दौलत का सिर चढ़ा है कुछ ऐसा,

बाज़ारो में बिकते से ईमान तमाम है,

 

इस कदर गिरी है अब सोच दुनिया की,

उठाने वाला हर शख्स यहाँ बदनाम है,

ना समझा ये छोटी सी बात वो ‘साथी’,

पीठ में घोपना खंजर, आजकल आम है || ड्व ||

 

© डॉ दिवाकर पोखरियाल

 

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