श्री सुशील कुमार श्रीवास्तव “सुशील”

  

हम ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान की तरह प्रतिदिन “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत एक रचना पाठकों से साझा कर रहे हैं। हमारा आग्रह  है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। हमने सहयोगी  “साहित्यम समूह” में “एकता शक्ति आयोजन” में प्राप्त चुनिंदा रचनाओं से इस अभियान को प्रारम्भ कर दिया  हैं। आज प्रस्तुत है श्री सुशील कुमार श्रीवास्तव “सुशील”  जी की  एक विचारणीय लेख  “एकता व शक्ति”

☆  सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ एकता व शक्ति 

बिखरे बिखरे रहने से,

बट जाती है शक्ति सारी;

पांच उंगलियां बंधी रहें जो,

दिखती है तब दमदारी।

अभी न जागे तो जागेंगे,

हम तुम सब कब बोला;

नीहित है एका में शक्ति,

बात जरा ये पहचानो।।

 

कब तक बांध रखोगे खुद को,

ऊंच नीच के बंधन में;

कब तक सिमट रखोगे खुद को,

संप्रदाय के बंधन में।

शक्तिशाली बनना है तो फिर,

देश राग को अपना लो;

नीहित है एका में शक्ति,

बात जरा ये पहचानो।।

 

अब न देना अवसर गैरों को,

रखना एका आपस में;

वरना सदियां कोसेंगी,

जो फूट पड़ी फिर आपस में।

मिली है सत्ता संघर्षों से,

फूट का न फिर विष घोलो;

नीहित है एका में शक्ति,

बात जरा ये पहचानो।।

 

जब जब फूट पड़ी है हम में,

औरों ने हमको लूटा;

आया जब तक होश हमें तो,

हमने अपना माथा कूटा।

देता रहा इतिहास गवाही,

अब तो “सुशील” आंखें खोलो;

नीहित है एका में शक्ति,

बात जरा ये पहचानो।।

 

© श्री सुशील श्रीवास्तव ‘सुशील’

9893393312

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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