श्री आर  के रस्तोगी

(श्री आर के रस्तोगी जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। वरिष्ठ साहित्यकार श्री रस्तोगी जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। हमें आपकी जीवन यात्रा अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है। हाल ही में आपका काव्य संग्रह काव्यांजलि प्रकाशित हुआ है जो कि अमेजन एवं फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।)

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 ☆ जीवन यात्रा ☆ हिंदी साहित्य एवं बैंकिंग ☆ श्री आर के रस्तोगी ☆ 

श्री आर  के रस्तोगी जी (श्री राम कृष्ण रस्तोगी) का जन्म २१ जनवरी सन  १९४६ में हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है, एक वैश्य परिवार में हुआ था। आपके पिता स्व रघुबर दयाल जी और माता जी का नाम कमला देवी था । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में ही हुई। बाद में आपके  गाँव में डैकेती पड़ने के कारण आपका सारा परिवार मेरठ आ गया और वही पर आपकी शिक्षा पूरी हुई।

आपका बचपन बड़े कठिन दौर से गुजरा। सन 1962 में आपके पिता का देहांत हो गया तो आप  पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उस समय आप केवल 15 -16 वर्ष के ही थे । घर में कोई कमाने वाला व्यक्ति नहीं था पर आपने  हिम्मत नहीं हारी और अपनी शिक्षा को जारी रखा और जीविका को चलाने के लिए ट्यूशन आदि भी करते  रहे और छोटे बच्चो के घर जाकर उन्हें ट्यूशन पढ़ाते और घर की जीविका चलाते।आपके पिता की मृत्यु के पश्चात आपके लिखने के शौक में कुछ कमी आ गई, क्योंकि आपको समय बिल्कुल नहीं मिलता था। पहले घर की जीविका जो चलानी थी। संयोग से आपको तुरंत चार रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जमना इलेक्ट्रिसिटी कंपनी मेरठ में बिजली के बिल बनाने की नौकरी मिल गई। उस समय आप केवल सोलह या सत्रह वर्ष  के ही  थे। नौकरी के पश्चात आप  पांच ट्यूशन भी करते  थे  जिससे आपको तीस पैंतीस रुपए मिल जाते थे।

सन 1960 की बात है जब आप राजकीय इंटर कॉलेज मेरठ में दसवीं के छात्र थे तब आपके कॉलेज में ब्रिटेन से एक डेलिगेशन आया था जो अपने साथ एक टेप रिकॉर्डर भी लाया था। उस समय आपने पहली बार ही टेप रिकॉर्डर देखा था। डेलिगेशन कुछ कविता आदि रिकॉर्ड करना चाहता था तभी कुछ दिन पूर्व लिखी आपकी एक कविता “मिली कहीं तुलसी की माला, लेकर उसे गले में डाला” पहली बार रिकॉर्ड की गई।

श्री रस्तोगी जी प्रारम्भ से ही पढने-लिखने में काफी होशियार और होनहार छात्र रहे हैं।  कविता लिखने का शौक आपको बचपन से ही रहा है तथा समय के साथ आपके लेखन में परिपक्वता आती गई। जीवन में उतार चढ़ाव के कारण कविताओं के लिखने में भी उतार चढ़ाव आने लगा। आप व्यंगात्मक शैली में देश की परिस्थितियों पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते। आपने लंदन में भी बैंकिंग सेवाएँ दी हैं और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहते थे।

आपने दो विषयों (अर्थशास्त्र एवं वाणिज्य) में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की तथा बैंक में सेवा के दौरान सी ए आई आई बी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की जो कि बैंकिंग क्षेत्र में प्रतिष्ठित परीक्षा है।

आपने 28 अप्रैल 1964 को लिपिक के रूप में भारतीय स्टेट बैंक की हापुड़ शाखा में ज्वाइन  किया और 31 जुलाई 2005  शाखा प्रबन्धक पद से रिटायर हुए। आपका बैंक की “बुक ऑफ़ इन्सट्रक्शंस” का हिंदी में अनुवाद करने में विशेष योगदान रहा है जो एक कठिन कार्य था। साथ ही बैंक की इन-हाउस मैगज़ीन में सह संपादक का भी कार्य किया ।

आपकी पहली पोस्टिंग बैंक की तरफ से सिंभावली शुगर में हो गई। वहीं आपने किसान डिग्री कॉलेज से बी ए हिंदी साहित्य से किया चूकि आपकी रुचि हिंदी साहित्य मै थी। इसके पश्चात  आपकी पोस्टिंग सरसावा में हो गई। आपको पढ़ने लिखने का काफी शौक था। इसलिए आपने  जे वी जैन डिग्री कॉलेज सहारनपुर में एडमिशन ले लिया और वहां से एम ए (अर्थशास्त्र) और एम काम किया और बराबर बैंक मै नौकरी भी करते रहे । उस समय आप चार बजे सुबह उठते और सहारनपुर के लिए ट्रेन पकड़ते, रेलवे स्टेशन से सायकिल से कॉलेज जाते और फिर  दुबारा सरसावा जाते।

सन 1970 में आपकी पोस्टिंग हाथरस में हो गई। वहाँ पर पहली बार आपकी भेंट श्रद्धेय काका हाथरसी जी से हुई। काका जी का  स्टेट  बैंक में “संगीत कार्यालय” के नाम से अकाउंट था। वे अक्सर बैंक आते थे और आपके पास बैठ जाते थे। उनका तुरन्त काम कर देने से वे बहुत प्रसन्न रहते थे। वे अक्सर आपको अपने घर भी बुला लेते थे और  आपकी  कविता आदि भी सुनते थे। आपको श्रद्धेय नीरज जी से भी मुलाकात करने का अवसर मिला।

आज प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक रचना

 ☆ पर्यावरण एवं महामारी  ☆

जब पल पल पेड़ कटते जायेंगे ,

तब सब जंगल मैदान बन जायेंगे।

मानव तब बार बार पछतायेगा ,

जब सारे वे मरुस्थल बन जायेगे।|

 

जब पौधे सिमट गए हो गमलो में ,

प्रकृति सिमट गयी हो बंगलो में।

जब उजाड़ जायेगे घौसले पेड़ो से,

तब बन्द हो जायगे पक्षी पिंजरों में।|

 

जब गांव बस रहे हो नगरों में,

प्रदूषण फ़ैल रह हो नगरों में।

जहरीली हवा होगी चारो तरफ,

दम घुट जायेगा बंद कमरों में।|

 

जब वाहन रेंग रहे हो सड़को पर,

वे धुआँ उडा रहे हो सड़को पर।

तब मानव सांस कैसे ले पायेगा ?

वह दम तोड़ेगा अपना सड़को पर।|

 

तब प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखायेगी,

मानव से हर तरह से बदले चुकायेगी।

वह अपने नए रूप में जल्द आयेगी ,

कोरोना जैसी नई महामारी लायेगी।|

 

© श्री राम कृष्ण रस्तोगी

गुरुग्राम

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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