श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है प्रभा पारीक जी के कथा संग्रह “शॉप-वरदान” की पुस्तक समीक्षा।)
☆ पुस्तक चर्चा ☆ कथा संग्रह – ‘शॉप-वरदान’ – प्रभा पारीक ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
पुस्तक: शॉप-वरदान
लेखिका: प्रभा पारीक
प्रकाशक: साहित्यागार,धामणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर- 302013
मोबाइल नंबर : 94689 43311
पृष्ठ : 346
मूल्य : ₹550
समीक्षक : ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
☆ शॉप-वरदान की अनूठी कहानियाँ – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
किसी साहित्य संस्कृति की समृद्धि उसके रचे हुए साहित्य के समानुपाती होती है। जिस रूप में उसका साहित्य और संस्कृति समृद्ध होती है उसी रूप में उसका लोक साहित्य और समाज सुसंस्कृत और समृद्ध होता है। लौकिक साहित्य में लोक की समृद्धि संस्कार, रीतिरिवाज और समाज के दर्शन होते हैं।
इस मायने में भारतीय संस्कृति में पुराण, संस्कृति, लोक साहित्य, अलौकिक साहित्य आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। समृद्ध काव्य परंपरा, महाकाल, ग्रंथकाव्य, पुराण, वेद, वेदांग उपाँग और अलौकिक-लौकिक महाकाव्य में हमारी समृद्ध परंपरा को सहेज कर रखा है। इसी के द्वारा हम गुण-अवगुण, मूल्य-अमूल्य, आचरण-व्यवहार, देव-दानव आदि को समझकर तदनुसार कार्य-व्यवहार, भेद-अभेद, शॉपवरदान आदि का निर्धारण कर पाते हैं।
अमृत परंपरा का अध्ययन, चिंतन-मनन व श्रम साध्य कार्य करके उसमें से शॉप और वरदान की कथाओं का परिशीलन करना बहुत बड़ी बात है। यह एक श्रमसाध्य कार्य है। जिसके लिए गहन चिंतन-मनन, विचार-मंथन, तर्क-वितर्क और आलोचना-समालोचना की बहुत ज्यादा जरूरत होती है।
तर्क, विचार और सुसंगतता की कसौटी पर खरे उतरने के बाद उसका लेखन करना बहुत बड़ी चुनौती होता है। इसके लिए गहन अध्ययन व चिंतन की आवश्यकता होती है। इस कसौटी पर प्रभा पारीक का दीर्धकालीन अध्ययन, शोध, चिंतन एवं मनन उनके लेखन में बहुत ही सार्थक रूप से परिणित हुआ है।
वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, रामायण, भगवत आदि में वर्णित अधिकांश शॉप उनके वरदान के परिणीति का ही प्रतिफल है। हर शॉप उनके वरदान को पुष्ट करता है। इसी द्विकार्य पद्धति को प्रदर्शित करती पुस्तक में शॉप और वरदान की अनेकों कहानियां हैं जो हमारी भारतीय संस्कृति के अनेक पुष्ट परंपराओं और रीति-रिवाजों को हमारे समुख लाती है। इसी पुस्तक के द्वारा इन्हीं कथाओं के रूप में हमारे सम्मुख सहज, सरल, प्रवहमय भाषा में हमारे सम्मुख रखने का कार्य लेखिका ने किया है।
वेद, पुराण, श्रीमद् भागवत आदि का ऐसा कोई प्रसंग, कथा, कहानी, शॉप, वरदान नहीं जिसका अनुशीलन लेखिका ने न किया हो। प्रस्तुत पुस्तक इसी दृष्टि से बहुत उपयोगी है। साजसज्जा उत्तम हैं। त्रुटिरहित छपाई, आकर्षक कवर ने पुस्तक की उपयोगिता में चार चांद लगा दिए हैं। 346 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य ₹550 वर्तमान युग के हिसाब से वाजिब है।
पुस्तक की उपयोगिता सर्वविदित हैं। साहित्य के क्षेत्र में इसका सदैव स्वागत किया जाएगा।
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
मोबाइल – 9424079675
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈