श्री कमलेश भारतीय
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ पुस्तक चर्चा ☆ “पुत्तल का पुष्प वटुक” – सुश्री मीना अरोड़ा ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
पुत्तल का पुष्प वटुक (हास्य व्यंग्य उपन्यास)
सुश्री मीना अरोड़ा
शब्दाहुति प्रकाशन, नई दिल्ली
पृष्ठ १४४ मूल्य ३९५ रु
मीना अरोड़ा का उपन्यास ‘पुत्तल का पुष्पवटुक ‘
इसी वर्ष मई माह में दिनेशपुर के लघुपत्रिका सम्मेलन में जाने का अवसर मिला तो हल्द्वानी से रचनाकार मीना अरोड़ा से भी आभासी दुनिया से निकल कर इसी दुनिया में मुलाकात हुई । ऐसी कि वे हमें दिनेशपुर से हल्द्वानी अपने घर मेहमान बना कर ही मानीं । प्यारा सा परिवार । आधी रात तक वे और उनके पतिदेव के साथ खूब सुनते सुनाते बीती । दूसरे दिन उन्होंने चलते समय मुझे अपना उपन्यास ‘पुत्तल का पुषेपवटुक’ दिया तो मैने भी अपना नया कथा संग्रह ‘नयी प्रेम कहानी’ सौंपा ।
अब मई से सितम्बर आ गया तो लगा कि एक बार उपन्यास की राह से गुजर कर देखा जाये । उपन्यास गांव के प्रधान वीरेंद्र के दूसरे बेटे पप्पू के जन्म लेने , उसे अवतार सिद्ध करने और छोटे भाई की लड़कियों संजू व रंजू से लिंगभेद करने , संत देवमूनि और डाकू तेजा के विधायक बनने जैसे अनेक प्रसंगों से चलते चलते न केवल ग्रामीण बल्कि देश की राजनीति ही नहीं धर्म के भी असली चेहरे उजागर करता आगे बढ़ता जाता है । चूंकि लेखिका ने इसके मुखपृष्ठ पर ही हास्य व्यंग्य उपन्यास का ठप्पा लगाया है तो स्वाभाविक है कि हास्य भी है और व्यंग्य की धार भी लेकिन मैं इसे शुद्ध उपन्यास ही कहना चाहूंगा । चोर चोर मौसेरे भाइयों की तरह डाकू तेजपाल और संत देवमुनि एक ही टीले के ऊपर रहते हैं । न डाकू संत के काम में दखल देते हैं और न संत डाकू के काम में । यही हमारे देश की राजनीति की डील है ।
पप्पू को वीरेंद्र व दादी रेवती अवतार साबित करने में जुटे रहते हैं लेकिन निराशा ही हाथ लगती है । वीरेन्द्र का छोटा भाई नितिन पहले आदर्शवादी और बाद में तेजपाल विधायक का निजी सचिव बनने पर समझौतावादी हो जाता है । उसकी पत्नी कंचन नितिन के बदलाव से खुश नहीं । अनेक प्रसंग हैं जब पप्पू अच्छा करने जाता है और हास्यास्पद स्थितियां बनती जाती हैं । अंत में मालती के साथ दुर्व्यवहार, करने वाले वकलू को खोजकर लाता है और मालती के परिवार को सारे गांव को भोज देने के संकट से उभार लेता है । वीरेंद्र को एक बार फिर लगता है कि पप्पू के लिए आश्रम बनवाया जा सकता है । हालांकि संजू और,रंजू ने ही पप्पू को ऐसा करने का आइडिया दिया था ! ये बेटियों लिगभेद के खिलाफ अपनी मां कंचन से मिलकर इस तरिके से आवाज उठाती हैं ।
भाषा बहुत ही चुटीली है और सचमुच व्यंग्यात्मक भी । कैसे सरकारी योजनाएं गायब हो जाती हैं । कुछ दिन बाद ही पुत्तुल गांव से सड़क, पुल , स्कूल के गायब हो जाने पर कमेटी बिठाई गयी ! दोष निर्दोष दोषियों के सिर धरा गया !
बलात्कार के दोषी वकलू को पप्पू खोजकर लाता है और पीट पीट कर कहता है -मांस , इस नीच का कटेगा और पकेगा भी ! कोई हीरा चाचा , कमला चाची और मालती को गांव से बाहर जाने को नहीं कहेगा ! यह है क्रांतिकारी पप्पू जो अंत में जाकर पिता वीरेंद्र की अवतार बनाने की आस जिंदा कर देता है !
इसी तरह यह पंचायत के बारे में कहना कि नियम , कायदे कानून , गरीब , छोटे और कमज़ोर वर्ग के लिए ही होते हैं ! ताकतवर और ऊंचे लोग कभी न्याय और कानून के मोहताज नहीं होते ! नितिन अब पहले जैसा नहीं रह गया था । वह तेजपाल का सचिव और वीरेंद्र का आज्ञाकारी भाई बन गया था !
गांव बदला, गांव वाले भी कुछ बदले पर गांव में कुछ नहीं बदला तो वह था वीरेंद्र की हुकूमत, पप्पू की अक्ल और कुछ परिवारों की गरीबी !
यही राजनीति है और यही हमारा देश ! जहां डाकू विधायक बन जाता है और हत्यारा देवमुनि ! यही डील चलती आ रही है कि कोई एक दूसरे के काम में टांग नहीं
अड़ायेगा! इसे कौन तोड़ेगा? इस दुष्चक्र से कौन निकालेगा ? इसलिए मैंने कहा कि यह सारा हास्य व्यंग्य उपन्यास नहीं कहा जा सकता । पूरा उपन्यास है जो विचार करने के लिए बहुत कुछ देता है पाठक को !
बहुत बहुत बधाई मीना अरोड़ा! लिखती रहो और हम पढ़ते रहें ! पाठक मंच की ओर से भी बधाई । इस सार्थक उपन्यास के लिए ।
© श्री कमलेश भारतीय
पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
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