श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं।आज प्रस्तुत है सुश्री सुकीर्ति भटनागर जी के बाल उपन्यास “धरोहर” की पुस्तक समीक्षा।)
☆ पुस्तक चर्चा ☆ बाल उपन्यास ‘धरोहर‘ – सुश्री सुकीर्ति भटनागर ☆ समीक्षा – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
उपन्यास- धरोहर
उपन्यासकार- सुकीर्ति भटनागर
प्रकाशक- साहित्यकार, धमाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर (राजस्थान) 302003 मोबाइल नंबर 93142 02010
पृष्ठ संख्या- 114
मूल्य- ₹250
समीक्षक ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश‘,
☆ समीक्षा- धरोहर के महत्व को रेखांकित करता उपन्यास ☆
उपन्यास का लेखन सबसे सरलतम विधा है। मगर उसके कथानक की बनावट और उपकथाओं का सृजन अपेक्षाकृत कठिन कार्य है। यदि इसका सृजन सरलता, सहजता व प्रवाह के साथ कर लिया जाए तो उपन्यास की रचना पूरी हो जाती है। तभी उपन्यास की गल्प रचना मुकम्मल और उत्कृष्ठ होती है।
उपन्यासकार को उपन्यास के कथानक में लिखने यानी विचार व्यक्त करने की संपूर्ण आजादी मिली होती है। वह अपने भावों, अपने विचारों और मनोरथ को अपनी मर्जी से उपन्यास की कथावस्तु में पिरो सकता है। उसका जो मन्तव्य हो उससे उपन्यास में डाल सकता है। इसी मन्तव्य से उपन्यास की सार्थकता सिद्ध होती है।
यदि बड़ों के लिए उपन्यास लिखा जाए तो उसमें संपूर्ण लेखकीय आजादी से कार्य किया जा सकता है। मगर यदि उपन्यास लेखन बालकों के लिए किया जाना है तो वह सबसे दुरुह यानी कठिन कार्य होता है। बच्चों के लिए लिखने में लेखक को बच्चा बनना पड़ता है। तब बच्चों के लिए लेखन किया जा सकता है।
बच्चों के लिखे लिए लिखे जाने वाले गल्फ के लिए उसकी कथा बहुत स्पष्ट होनी चाहिए। वह बच्चों को स्पष्ट रुप में समझ में आ जाए। उसमें कोई कहानी हो। वह उसे अपनी-सी लगे। तभी बच्चा उपन्यास पढ़ने को लालयित होता है।
बच्चों के उपन्यास का आरंभ रोचक कथावस्तु के साथ होना चाहिए। उसे पढ़ते ही बच्चे में उत्सुकता जागृत हो जाए। वह आरंभ पढ़ते ही पूरा उपन्यास पढ़ने को लालयित हो। उस भाग के आरंभ के साथ एक जिज्ञासा का आरंभ और अंत में समाधान हो जाए। दूसरे भाग में दूसरी जिज्ञासा का आरंभ हो जाए। यह सिलसिला हरेक भाग में चले, तभी उपन्यास सार्थक होता है।
उपन्यास की भाषा शैली सरस, सहज हो। उसमें रस की प्रधानता हो। वाक्य छोटे-छोटे हो। इस दृष्टि से प्रस्तुत उपन्यास धरोहर की समीक्षा करते हैं। जिसको लिखा है प्रसिद्ध उपन्यासकार सुकीर्ति भटनागर जी ने। उपन्यास को इस कसौटी पर करते हैं तब हम देखते हैं कि धरोहर उपन्यास की अपनी एक स्पष्ट कथावस्तु है। यह आरंभ से ही इसकी कथा में उत्सुकता जगाए रखती है।
उपन्यास का कथानक स्पष्ट है। एक गांव में कुछ अनिष्ट और अनैतिक रूप से घटित घटना होती है। जिसका समाधान धरोहर उपन्यास का बालपात्र अपने हिसाब व तरीके से करता है। इसी कथानक पर पूरे उपन्यास की कथावस्तु को बुना गया है।
उपन्यास के बाल पात्र अपनी समझ के अनुरूप समस्या का निरूपण करते हैं। उसी समस्या के द्वारा इसके सहायक पात्र उस समस्या का समाधान तक पहुँचते हैं। इस बीच अनेक उतार-चढ़ाव व समस्याएं आती हैं। उनका समाधान भी होता चला जाता हैं।
मसलन- उपन्यास की हरेक भाग में एक समस्या आती है। उसका समाधान अंत में हो जाता है। तत्पश्चात दूसरे भाग में दूसरी समस्या उत्पन्न होती है। उसका समाधान के साथ एक अन्य नई समस्या उत्पन्न हो जाती है।
इस तरह पूरा उपन्यास सरल, सहज व प्रवाहमई गति से जिज्ञासा जगाते हो आगे बढ़ता है।
उपन्यास की भाषा सरल व सहज है। कहीं-कहीं मुहावरेदार भाषा का प्रयोग किया गया है। जहां आवश्यक हुआ है वर्णन के साथ-साथ उपयुक्त संवाद का प्रयोग किया गया है।
कुल मिलाकर देश की धरोहर की अनमौलता और उसकी उपयुक्तता को सहेजने के रूप में लिखा गया उपन्यास पाठकीय दृष्टि से बेहतर बन पड़ा है। 114 पृष्ठ के उपन्यास का मूल्य ₹250 बालकों के हिसाब से ज्यादा है।
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
मोबाइल – 9424079675
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈