श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है। आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री अभिमन्यु जैन जी के व्यंग्य संग्रह – “पानी राखिए” पर पुस्तक चर्चा।)
☆ पुस्तक चर्चा ☆ “पानी राखिए” (व्यंग्य-संग्रह) – श्री अभिमन्यु जैन ☆ समीक्षा – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
मजबूत खोपड़ी से उपजा ‘पानी राखिए’ व्यंग्य संग्रह… – जय प्रकाश पाण्डेय
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। रहीम के इस दोहे ने मनुष्य और समाज की बेहतरी के लिए सकारात्मक संदेश दिया है और व्यंग्यकार अभिमन्यु जैन के व्यंग्य संग्रह ‘पानी राखिए’ में भी हमारे आसपास फैली विसंगतियों, पाखंड, दोगलापन जैसी अनेक विकृतियों पर अपने व्यंग्य लेखों के मार्फत प्रहार कर समाज को जागृत करने का प्रयास किया है।
श्री अभिमन्यु जैन
सच ही तो है पानी हमारे जीवन की सबसे अहम जरूरतों में से एक है इसके बिना मनुष्य ही क्या, किसी भी जीव- जंतु यहाँ तक की प्रकृति के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती, इसीलिए ‘पानी राखिए’ शीर्षक वाले संकलन को पानी पी पीकर पढ़ने की इच्छा हुई। अभिमन्यु जी ने पानी राखिए संग्रह सप्रेम भेंट किया, पानी राखिए संग्रह का कवर पेज चेतावनी दे रहा है कि भविष्य में होने वाली लड़ाईयां पानी के कारण होगीं, इसीलिए पानी बचाना बहुत जरूरी होता जा रहा है, और समझ में ये भी आया कि पानी सबको रचता है, पृथ्वी से पानी खींचने के लिए पौधों और वृक्षों की जड़ें नीचे की तरफ गईं। पानी से पृथ्वी पर जीवन आया, पानी से भाषा बनीं, पानी से हम बने, जीवन वहां है जहां पानी है, ऐसे में व्यंग्यकार अभिमन्यु जैन जी का संग्रह “पानी राखिए” पढ़ने के लिए आकर्षित करता है, होना भी यही चाहिए कि शीर्षक ऐसा हो जो पाठक को पढ़ने के लिए बुलाए। सहज सरल व्यक्तित्व के धनी हास्य विनोद से लबालब भरे व्यंग्यकार अभिमन्यु जी हर रचना में कोशिश करते हैं कि उनकी रचना का शीर्षक पाठक को पकड़ कर रचना पूरी पढ़वा ले। व्यंग्यकार अभिमन्यु जैन जी का कहना है कि “व्यंग्य लिखना सरल नहीं, इसके लिए दिल के साथ खोपड़ी भी मजबूत होना चाहिए”। खोपड़ी तभी मजबूत बनेगी जब उसमें व्यंग्य लिखने लायक पानी हो, और दिल दरिया हो, ये सारी बातें व्यंग्यकार अभिमन्यु जी में कूट-कूट कर भरीं हैं। अभिमन्यु जी सकारात्मक सोच के व्यक्ति है विषम परिस्थितियों में भी राह निकालना उनके लिए चुटकियों का काम है। वे यायावर, मस्त मौला लेखक है और यहीं बिंदासपन उनके व्यंग्य लेखों में यदा-कदा दिखाई देता है।
अभिमन्यु जैन जी के व्यंग्य लेखों पर प्रसिद्ध आलोचक स्व.बालेन्दु शेखर तिवारी का कहना था कि ‘अभिमन्यु जैन ने व्यंग्य के इलाके में जान बूझकर पहलकदमी की है और अपने व्यंग्यों के लिए कथ्य और शिल्प की नव्यता तलाशी है, नये आलम्बनों से जूझते हुए उनके व्यंग्य अपने छोटे आकार में भी अनुभव के विस्तार का संकेत देते हैं ‘
जिन प्रवृतियों और आदतों को लेखक ने अपनी बेबाक कलम से पकड़ा है वो किसी एक शहर की बात नहीं है बल्कि शहर-शहर गांव-गांव ये नजारे आपको देखने मिलेंगे। ‘पानी राखिए’ व्यंग्य में लेखक लिखता है, गर्मी और पानी दोनों का बैर है, गर्मी में नल में पानी नहीं आधे घंटे हवा और 15 मिनिट आंसू देता है, इसीलिए शांतिलाल का रोज नल पर झगड़ा होता है और रोज अशांति होती है, गली गली पानी पर पानीपत का युद्ध देखने मिलता है। ये संकेत ऐसे हैं जो इशारा करते हैं कि अगला विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा, इसीलिए लेखक बार बार चेतावनी दे रहा है कि पानी राखिए क्योंकि बिन पानी सब सून… हार कर फिर कहता है कि चलो जब प्यास लगे तो रेत निचोड़ना ही होगा। ‘जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई’ में टोनू भैया के बार बार जन्मदिन मनाने के ढकोसलेबाजी और राजनैतिक लोगों पर गहरे कटाक्ष किए गए हैं।
अभिमन्यु जैन जी के यहां गुदगुदाते लफ्ज़ों का ये लाव लश्कर किसी चश्मे से फूट कर बहते पानी सा छलकता है। इसमें सायास कुछ भी नहीं है बल्कि अनायास ही लच्छेदार भाषा की फुहार टपकती दिखाई देती है। लच्छेदार भाषा से सराबोर व्यंग्य ‘फूफा जी’ पाठक को जकड़कर बांध लेता है, हास्य विनोद से भरपूर कटाक्ष करते वाक्य जीवन के सच से सामना कराते हैं। फूफा गुजरा गवाह – लौटता बराती है। जीजा नई फिल्म तो फूफा पुरानी फिल्म नये प्रिंट में। मांगलिक अवसर पर फूफा मुंह न फुलाए तो काहे का फूफा। चाहे जो मजबूरी हो फूफा की मांग पूरी हो….
आज के लोग चिकित्सक, अस्पताल मालिक अपने निजी कामों में किस स्वार्थ की हद तक तल्लीन दिखाई देते हैं, ये लेखक ने बखूबी देखा है और उस पर व्यंग्य की दृष्टि से प्रहार किया है। ‘डाक्टर सरकारी, मरीज तरकारी ‘ लेख का शीर्षक पाठक को पढ़ने के लिए बुलाता है। लेख में अस्पताल और असंवेदनशील होते डाक्टरों के चरित्र पर चिंता व्यक्त करते हुए लेखक कहता है कि डाक्टर, अब डाक्टर नहीं रहे वे चाण्डाल बन लाश भी गिरवी रखने लगे हैं। व्यंग्य लेख में बड़े करुण दृश्य उकेरे गए हैं और पैसे के लालच में मरीजों के शोषण की कहानी कही गई है।
सच्चा व्यंग्य मनुष्य को सोचने के लिए बाध्य करता है। पाठक के मन में हलचल पैदा करता है, और जीवन में व्याप्त मिथ्याचार, पाखंड, आसामंजस्य और अन्याय से लड़ने के लिए उसे तैयार करता है। चुनाव में वोट खींचने एवं जनता को तरह तरह के लालच देने वाली शासकीय योजनाओं की बाढ़ का पोस्टमार्टम करती हुई रचना ‘बहना सुखी, भैया दुखी’ में भैया लोगों की पीड़ा और वोट खींचने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने आगामी चुनाव हेतु भैया लोगों को सुखी करने की योजना घोषित कर दी है, यही इस व्यंग्य की सफलता मानी जाएगी। ‘बेईमान भर्ती केन्द्र’ लघु व्यंग्य जरूर है पर ईमानदारी से बेईमानी का विश्लेषण करते हुए बेईमान लोगों पर कटाक्ष कर सुधरने का मौका दिया है। उधर ‘फुटपाथ’ लेख में बड़ी सतर्कता के साथ फुटपाथ से अपनी करुण कहानी कहलायी गई है, फुटपाथ कहता है कि वह अमीर गरीब, ऊंच नीच में भेदभाव नहीं करता, फुटपाथ सबके भले पर विश्वास करता है कभी वह गरीबों का मसीहा बन जाता है तो कभी फुटपाथ बनाने वाले अफसर ठेकेदार की हवेली बनवा देता है। उपेक्षित, तिरस्कृत, पीड़ित की पीर फुटपाथ ही सहता है।
व्यंग्य लेखन वास्तव में देश, काल और परिस्थितियों के मद्देनजर व्यक्ति और समाज के अध्ययन से जन्मता है, एक व्यंग्य लेख ‘निधन विचार’ में लेखक ने जीवन की सच्चाई और रिश्तों में आयी खटास को मृत्यु के बहाने बड़े करुण अंदाज में प्रस्तुत करता है, मौत कई घरों में अंधेरा कर जाती है और कई घरों में अंधेर। बाप मर गए अंधेरे में, बेटा का नाम प्रकाश धर गए… कुछ अच्छे प्रयोग देखकर खुशी हुई।
‘नान स्टाप’ लेख में शब्दों की गजब की बाजीगरी देखने मिलती है, नान स्टाप शब्द के बहाने तरह तरह से लूटने और फायदा उठाने वालों पर हास्य विनोद के साथ व्यंग्य बाण छोड़े गए हैं। सादा जीवन, चरित्र बल, ईमानदारी और अपने काम से काम जैसे गुणों ने ही अभिमन्यु जैन की कलम में इतनी ताकत भरी है कि वह कामचोरों, भ्रष्टाचारियों, जमाखोरों, चापलूसों और स्वार्थी, मौकापरस्त, झूठे आश्वासन देने वाले नेताओं का अनावरण करने से नहीं चूकती। वे कहते हैं कि व्यंग्यकार सदैव स्वस्थ विपक्ष की भूमिका निभाता है। व्यंग्य व्यक्ति, सत्ता और समाज को खबरदार करने का काम करता है।
पानी राखिए’ व्यंग्य संग्रह में 46 व्यंग्य रचनाएं उछल-कूद करते पाठकों को पढ़ने बाध्य करतीं हैं। सभी व्यंग्य छोटे हैं पर लक्ष्य बेधन में सफल हैं। यदि व्यंग्य अखबार में छपा है तो कहते हैं कि व्यंग्य की उम्र अधिक नहीं होती किंतु व्यंग्यकार की दृष्टि और उसकी अभिव्यक्ति सशक्त हो तो व्यंग्य दीर्घ जीवी बन जाता है।
अपने आस-पास फैले विषयों, विसंगतियों एवं रोजमर्रा जिन्दगी में फैले ढकोसलेपन जैसी प्रवृत्तियों पर अभिमन्यु जी ने सभी लेखों में अपने तरकश से खूब व्यंग्य बाण छोड़े हैं बहुत अनुशासनात्मक भाषा में।
कुल मिलाकर इस संग्रह की सभी व्यंग्य रचनाएं सहज, सरल होकर भी विसंगतियों पर गहन प्रहार करती हैं।
किताब चर्चा योग्य है, खरीदकर पढ़ना घाटे का सौदा बिल्कुल नहीं। उनके व्यंग्य मात्र हँसी-मजाक नहीं हैं वे चार दशकों से अधिक समय से उद्देश्य पूर्ण, संदेशात्मक तीखी मारक क्षमता वाले व्यंग्य लिख रहे हैं। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं निरंतर उनकी रचनाओं का प्रकाशन कर रही हैं। आकाशवाणी से भी जब-तब रचनाओं का प्रसारण होता रहता है।
साफ़ सुथरे मुद्रण, शुद्ध भाषा और कलात्मक प्रस्तुति का श्रेय प्रकाशक को दिया जाए या लेखक को, ये सोचे बिना पाठक अभिमन्यु जी की अगली किताब के इंतजार में रहेंगे। लेखक और संदर्भ प्रकाशन के लिए दिल से बधाई और शुभकामनाएं हैं।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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