☆ पुस्तक चर्चा ☆ आत्मकथ्य – ‘लेखकोपयोगी सूत्र और 100 पत्रपत्रिकाएं’ ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’☆

पुस्तक – लेखकोपयोगी सूत्र और 100 पत्रपत्रिकाएं

लेखक – श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

प्रकाशक – नोशन प्रेस

मूल्य – 200 रु (पेपरबैक) 

पृष्ठ संख्या –  156

ISBN:-10-1638324948

ISBN:-13-978-1638324942

इस संस्करण को अमेज़न और नोशन प्रेस से खरीदा जा सकता है।

अमेज़न लिंक >> लेखकोपयोगी सूत्र और 100 पत्रपत्रिकाएं

नोशन प्रेस लिंक >> लेखकोपयोगी सूत्र और 100 पत्रपत्रिकाएं

? इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए ई-अभिव्यक्ति परिवार की और से श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ?

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

लेखक परिचय

नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

जन्मतिथि एवं स्थान- 26 जनवरी 1965, भानपुरा जिला-नीमच (मप्र)

प्रकाशन- अनेक पत्रपत्रिकाओं में रचना सहित 141 बालकहानियाँ 8 भाषा में 1128 अंकों में प्रकाशित।

प्रकाशित पुस्तकेँ- 1- रोचक विज्ञान बालकहानियाँ, 2-संयम की जीत, 3- कुएं को बुखार, 4- कसक  5- हाइकु संयुक्ता, 6- चाबी वाला भूत, 7- पहाड़ी की सैर  सहित 4 मराठी पुस्तकें प्रकाशित।

☆ पुस्तक चर्चा ☆ आत्मकथ्य – ‘लेखकोपयोगी सूत्र और 100 पत्रपत्रिकाएं’ ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’☆

प्रथम संस्करण से…..
अभ्यास भी गुरु है। बिना अभ्यास के कुछ नहीं सीखा जा सकता। संगीत के साथ रियाज जुड़ा है तो लेखन के साथ अभ्यास ।

अभ्यास के साथ-साथ यदि किसी से मार्गदर्शन मिलता रहे तो लक्ष्य जल्दी प्राप्त हो जाता है । गुरु का मार्गदर्शन दीपक की लौ की तरह है जो अंधेरे में राह बताता है ।

लेखन के लिए ये तीन बातें जरुरी है । एक, अभ्यास खूब किया जाए। दो, अपने ज्ञान का प्रयोग करना सीखा जाए । तीन, सही मार्गदर्शन प्राप्त किया जाए। इसी तीसरे लक्ष्य की पूर्ति के लिए यह पुस्तक प्रस्तुत की जा रही है, जिस का सारा श्रेय कहानी लेखन महाविद्यालय के सूत्रधार डॉ. महाराज कृष्ण जैन को जाता है ।

दिनांक 05-07-95

 

तीन महीने की मेहनत के बाद आखिर किताब पूरी हो ही गई…..

इस पुस्तक का पहला संस्करण सन 1995 में प्रकाशित हुआ था और वह 4 साल में ही समाप्त प्राय हो गया था। उस वक्त यह पुस्तक 40 पेज की थी और आज 150 के लगभग पेज की हो गई है। उसी वक्त आदरणीय डॉ महाराज कृष्ण जैन साहब ने मुझे इसे अद्यतन करने के लिए कहा था। वह अद्यतन संस्करण मैं ने तारिका प्रकाशन, कहानी लेखन महाविद्यालय, अंबाला छावनी को पहुंचाया भी था। मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था। आदरणीय महाराज कृष्ण जैन साहब उसी दौरान हमें छोड़ कर चले गए। इस कारण यह संस्करण अटका हुआ रहा। पुन: इसे अद्यतन कर के आप के सम्मुख प्रस्तुत हैं।

इसमें नवोदित रचनाकारों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र शैली में जानकारी दी गई है।

उपन्यास लेखन की दो पद्धति है। अधिकांश दूसरी पद्धति का उपयोग करते हैं । इसी की व्यवहारिक योजना को इस पुस्तक में 13 पृष्ठों में समेटा गया है। यदि आप उपन्यास लिखना चाहते हैं तो आपके लिए यह पुस्तक काम की हो सकती है।

इस के अलावा भी बहुत कुछ है।

 

द्वितीय संस्करण से …..

लेखन में तीन बातें बहुत जरूरी है

यह अनुभव सिद्ध रहस्य है। जब तक आप बेहतर नहीं पढ़ते हैं तब तक बेहतर नहीं लिख सकते हैं। बेहतर पढ़ने पर ही बेहतर शब्दकोश तैयार होता है। यही शब्दकोश आपके लेखन में उपयोगी होता है।

इसलिए पहली बात- खूब पढ़ा जाए। जमकर पढ़ा जाए । अच्छा पढ़ा जाए। लेखन में सहायक हो, वैसा पढ़ा जाए। इन पंक्तियों के लेखक स्वयं अपनी रचना लिखने के पूर्व विधा की 20-25 रचनाएं पढ़ लेता है। तब लिखता है। तभी बेहतर ढंग से लिखा बाहर आता है।

दूसरी बात- जिस पत्रपत्रिका में छपना चाहते हैं उसे निरंतर देखते रहे। उसको देखने पढ़ने से उसकी रीति नीति पता चलता रहता है। उसके दृष्टिकोण को समझने के लिए यह बहुत जरूरी है। ताकि पत्रिका के इन रीति नीतियों को बेहतर ढंग से समझा जा सके। तभी आप उस पत्रिका के अनुरूप लिख सकते हैं।

पत्रिका क्या छपती है? यह जानना बहुत जरूरी है। आप एक धार्मिक रचना सरिता मुक्ता में छपने नहीं भेज सकते हैं। यदि भेज भी दी है तो वह हरगिज छप नहीं सकेगी। कारण स्पष्ट है कि सरिता मुक्ता की रीति नीति धार्मिक पाखंड का खंडन मंडन करना है। इस कारण वह इस तरह की रचनाएं प्रकाशित नहीं करेगी।

इसी तरह, एक धार्मिक पत्रिका सरिता मुक्ता की रीति नीति की रचनाएं भी हरगिज प्रकाशित नहीं करेगी। चाहे आपकी रचना कितनी भी श्रेष्ठ क्यों ना हो। कारण स्पष्ट है, धार्मिक पत्रिकाएं धार्मिक मान्यता, संस्कृति, परंपरा आदि की पोषक रचना ही स्वीकृत करती और छापती है। इस कारण, आपको पत्र पत्रिकाओं को सदा पढ़ते देखते रहना जरूरी है।

तीसरी और जरूरी बात- आपको बेहतर मार्गदर्शन मिलता रहे और आप बेहतर मार्गदर्शन प्राप्त करते रहें। यह मार्गदर्शन कई तरह का हो सकता है। छपना भी एक प्रेरक मार्गदर्शन ही है। इसके अलावा अपनी छपी रचना को कार्बन कॉपी से मिलान करते रहिए। इस से आपको अपनी कई तरह की गलतियां पता चलती रहेगी। यह स्व मार्गदर्शन होगा। आप अपनी गलतियों का परिष्कार कर पाएंगे।

यदि रचना अस्वीकृत हो तो उसका कारण खोजिए। निराश व हताश हरगिज़ न हो। अस्वीकृति कई कारणों से होती है। जरूरी नहीं कि रचना बेकार हो। इसके कारणों को जानने की कोशिश करें।

आपके आसपास कोई साहित्यकार रहता हो तो उसे रचना दिखाइए। उस से सलाह मशवरा कीजिए। इससे आप की नजर और नजरिया बदलेगा। उससे  अस्वीकृत रचना पर सलाह लीजिए। उन की बताई सलाह पर चलिए। उसे अपनाइए। वह आपके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।

गुरु का मार्गदर्शन आप का मार्ग प्रशस्त करता है। यह बेहद जरूरी है। इसी तीसरी बात को सामने लाने के लिए यह पुस्तक लिखी गई है। इस पुस्तक से आपको अनुभव सिद्ध मार्गदर्शन मिलेगा।

आप इसे पढ़कर बताइएगा कि यह पुस्तक आपको कैसी लगी ? इसमें और क्या जोड़ा जाए?  या और क्या घटाया जाए ? ताकि भविष्य में इसमें सुधार किया जा सके। आपके पत्र, संदेश या मोबाइल का इंतजार रहेगा।

आपका साथी रचनाकार

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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