श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’

 ☆ पुस्तक चर्चा ☆ 

☆ तुमसे क्या छुपाना 2025 ☆ आत्मकथ्य – श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’ ☆

(‘क्षय मुक्त भारत’ की संकल्पना पर आधारित सामाजिक उपन्यास)

(पुस्तक समीक्षक श्री राम राज भारती जी के अनुसार “उपन्यास लेखन में श्रेयस जी पर मुंशी प्रेमचंद एवं रामदेव धुरंधर का सम्यक प्रभाव पड़ा है ।” यह पंक्ति अपने आप में श्री श्रेयस जी के संवेदनशील लेखन को साहित्यिक जगत का प्रतिसाद है। सुप्रसिद्ध प्रवासी भारतीय वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर जी द्वारा लिखित भूमिका ने उपन्यास को निश्चित ही पारस स्पर्श दिया है। श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’ जी को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं और अभिनंदन।)

पुस्तक – तुमसे क्या छुपाना 2025

लेखक – श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’

प्रकाशक – युगधारा फ़ाउंडेशन एवं प्रकाशन, लखनऊ उत्तरप्रदेश्ज

पृष्ठ संख्या – 288

मूल्य – ₹380

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“तुमसे क्या छुपाना” क्षय मुक्त भारत की संकल्पना पर आधारित यह उपन्यास क्षय उन्मूलन कार्यक्रम और उससे जुड़े हुए “सौ दिवसीय समग्र टीबी अभियान” की समग्रता को स्वयं में सजोये एक ऐसा कथात्मक दस्तावेज है, जिसमें क्षय रोग के कारण, निवारण एवं जन जागरण जैसे समस्त पक्ष मार्मिकता सामाजिकता और संवेदनशीलता से सजे कथानकों के साथ सुसज्जित ढंग से सजोए गए हैं। उपन्यासकार ने जो कि स्वयं क्षय उन्मूलन कार्यक्रम से लगभग एक दशकों से दिल से जुड़ा है, उसने अपने पल-पल के अनुभव को इस साहित्यिक दस्तावेज में सजोने का प्रयास किया है। उपन्यास में जिन पक्षो को रखा है वे कुछ इस प्रकार है –

  • ‌उपन्यास की नायिका एवं उसके माता-पिता अभाव भरी जिंदगी और गरीबी में जीते हैं। अशिक्षा और अज्ञानता बस नायिका की माँ टीबी रोग का शिकार बन जाती है। पिता इलाज के लिए शहर ले जाते हैं लेकिन वह बच नहीं पाती है। पिता को इस बात का तब एहसास होता है कि यदि मैंने आशा बहू का कहना मान लिया होता, और पहले टीबी की जांच के लिए तैयार हो जाता तो मेरी सुखवंती मेरे पास होती।
  • नायिका देवनंती संघर्षशील युवती है। क्षय उन्मूलन कार्यक्रम से सामाजिक तौर पर जुड़ती है, जिसमें उसका सह नायक शशांक मुख्य भूमिका में आता है। सह नायक का मित्र भावेश क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम का समर्पित कार्यकर्ता है।
  • सह नायक कोविड जैसे कठिन समय में किस प्रकार क्षय रोगीयों को ढूंढ निकालता है और उसकी इलाज कराता है, यह स्वयं में बेमिसाल है।
  • क्षय उन्मूलन कार्यक्रम का कार्यकर्ता भावेश कॉविड जैसे कठिन काल में उत्तर प्रदेश में किस प्रकार से दूसरे राज्यों से आए हुए क्षय रोगियों को जांच और दवा को  उपलब्ध कराने में उनका मदद करता है, इसका सच्चा और जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है।राज्य स्तर से किया गया यह प्रयास सराहनीय है।
  • क्षय उन्मूलन कार्यक्रम में आशा बहू का कितना महत्वपूर्ण रोल है, उपन्यास बताने में सफल होता है। आशा किस प्रकार कार्य करती है, और किस प्रकार से क्षय रोगियों की ढूंढने में मदद करती है इसका चित्रण उपन्यास में है।
  • क्षय उन्मूलन कार्यक्रम का कार्यकर्ता किस तरह से सामजिक सामाजिक भागीदारी करते हुए क्षय रोगियों को ढूंढने से लेकर उनको इलाज पर लाने, पोषण भत्ता, निक्षय पोषण दिलवाने एवं उनको स्वस्थ होने तक लगा रहता है।
  • जन भागीदारी एवं निक्षेप पोषण योजना का जीवंत दृश्य इस उपन्यास में समाहित है।
  • गांव के मुखिया से लेकर विधायक, मंत्री तक किस तरह से इस कार्यक्रम में जुड़कर भागीदारी करते हैं।
  • टीबी चैंपियन और टीबी वॉरियर्स की भागीदारी और उनके मध्य का भावपूर्ण संवाद भी इस उपन्यास को सुखद बनाता है।
  • उपन्यास का अंतिम भाग क्षय मुक्त भारत की संकल्पना को साकार करता हुआ प्रतीत होता है।
  • उपन्यास सुखान्त है।
  • उपन्यास की नायिका जो स्वयं टीबी चैंपियन है वह अंत में उपन्यास के सह नायक के साथ परिणय सूत्र में बधती है। जहां शादी के जयमाल आदि नृत्य गाने -धूम धड़ाम के बीच होते हैं वहीं यह मिलन क्षय उन्मूलन कार्यकर्ताओं सामाजिक क्षेत्र के लोगों तथा क्षय उन्मूलन से जुड़े एक कार्यक्रम में एक रहस्योद्घाटन के रूप में होता है, यह इस उपन्यास के अंतिम भाग को अतीव मार्मिक एवं संदेश प्रद बना देता है।
  • उपन्यासकार आवरण पृष्ठ जिस पर “तुमसे क्या छुपाना” 2025 लिखा है, यह क्षय उन्मूलन वर्ष को इंगित करता हुआ, अपने उद्देश्य में सफल होता है।
  • उपन्यास क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के साथ-साथ एक सामाजिक, मार्मिक प्रेम कथा पर आधारित आत्ममुग्ध करने वाले कथानक पर आधारित उपन्यास है।
  • प्रदेश के समस्त जनपदों के लगभग समस्त क्षय उन्मूलन कार्यक्रम से जुड़े हुए क्षय कार्यकर्ताओ तक पहुंच चुका है।
  • उपन्यास, राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उप्र द्वारा वर्ष 2024 में श्याम सुंदर दास पुरस्कार (₹ 1,00, 000/-) द्वारा सम्मानित है।
  • क्षय उन्मूलन वर्ष 2025 में यह उपन्यास अपने मूल उद्देश्य के साथ क्षय उन्मूलन अभियान में अग्रणी भूमिका निभाएगा तथा और अधिक सम्मान पाकर स्वयं को साहित्य के उच्च पायदान पर स्थापित करने में सफल होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”

कवि, लेखक, समीक्षक

लखनऊ, उप्र, (भारत )

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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Jagat Singh Bisht

महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय पर इस आत्मकथ्य का स्वागत है।
साधुवाद!

Rajesh kr Singh

हार्दिक आभार.. आदरणीय हेमंत बावंकर जी