श्री दीपक गिरकर

☆ पुस्तक चर्चा ☆भीड़ और भेड़िए (व्यंग्य संग्रह) – श्री धर्मपाल महेन्द्र जैन ☆ श्री दीपक गिरकर ☆

समीक्षित कृति : भीड़ और भेड़िए (व्यंग्य संग्रह)

लेखक   : धर्मपाल महेन्द्र जैन     

प्रकाशकभारतीय ज्ञानपीठ, 18, इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नई दिल्ली – 110003 

मूल्य   : 260 रूपए

☆ विसंगतियों पर तीव्र प्रहार का रोचक संग्रह  – श्री दीपक गिरकर ☆

भीड़ और भेड़िएचर्चित वरिष्ठ कवि-साहित्यकार श्री धर्मपाल महेन्द्र जैन का चौथा व्यंग्य संग्रह हैं। धर्मपाल जैन के लेखन का कैनवास विस्तृत है। वे कविता और गद्य दोनों में सामर्थ्य के साथ अभिव्यक्त करने वाले रचनाकार हैं। धर्मपाल महेन्द्र जैन की प्रमुख कृतियों में सर क्यों दाँत फाड़ रहा है”, “दिमाग वालो सावधान”, “इमोजी की मौज में (व्यंग्य संग्रह), इस समय तक”, “कुछ सम कुछ विषम” (काव्य संग्रह) शामिल हैं। इनकी रचनाएँ निरंतर देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। धर्मपाल महेन्द्र जैन की गिनती आज के चोटी के व्यंग्यकारों में है। इनका व्यंग्य रचना लिखने का अंदाज बेहतरीन है। व्यंग्यकार ने इस संग्रह की रचनाओं में वर्तमान समय में व्यवस्था में फैली अव्यवस्थाओं, विसंगतियों, विकृतियों, विद्रूपताओं, खोखलेपन, पाखण्ड इत्यादि अनैतिक आचरणों को उजागर करके इन अनैतिक मानदंडों पर तीखे प्रहार किए हैं। साहित्य की व्यंग्य विधा में धर्मपाल जी की सक्रियता और प्रभाव व्यापक हैं। व्यंग्यकार वर्तमान समय की विसंगतियों पर पैनी नज़र रखते हैं। लेखक अपनी व्यंग्य रचनाओं को कथा के साथ बुनते हुए चलते हैं।

श्री धर्मपाल महेन्द्र जैन

भीड़ और भेड़िए”, “प्रजातंत्र की बस”, दो टाँग वाली कुर्सी”, भैंस की पूँछ”, “पहले आप सुसाइड नोट लिख डालें”, लाचार मरीज और वेंटिलेटर पर सरकारें”, कोई भी हो यूनिवर्सल प्रेसिडेंट”, “हाईकमान के शीश महल में”, “लॉक डाउन में दरबार”, “देश के फूफा की तलाश”, “चापलूस बेरोजगार नहीं रहते संविधान को कुतरती आत्माएँ जैसे रोचक और चिंतनपरक व्यंग्य पढ़ने की जिज्ञासा को बढ़ाते हैं और साथ ही अपनी रोचकता और भाषा शैली से पाठकों को प्रभावित करती हैं। भीड़ और भेड़िएसमकालीन राजनीति की बखिया उधेड़ता एक रोचक व्यंग्य रचना है। रचना भीड़ और भेड़िएव्यंग्य में लेखक लिखते है सत्तारूढ़ राजनेता या मोक्ष बुकिंग एजेंट जिस तरह भीड़ का भावुक हृदय जीतते हैं वह सबके बस की बात नहीं है। वे भीड़ में घुसी भेड़ों में यह आत्मविश्वास जमा देते हैं कि वे अपनी आत्मा की आवाज सुन कर वहाँ हैं। जो प्रायोजित भीड़ दैनिक भत्ते पर आती है वह पेशेवर भेड़ों से बनी होती है। ये भेड़ें तय अवधि के लिए आँखें बंद कर अपनी आत्मा किराए पर उठा देती हैं। दाम दो और आत्मा ले लो। आदमी से बनी भेड़ का चरित्र आदमी जैसा ही रहता है, संदिग्ध। आदमी पशु बनकर भी पशु जैसा वफादार नहीं बन सकता। (पृष्ठ 16)

प्रजातंत्र की बसलोकतांत्रिक प्रवृत्तियों पर करारा और सार्थक व्यंग्य है। बस को धक्का लगाने के लिए सरकार ने बड़ा अमला रखा है। दायीं तरफ से आईएएस धक्का लगा रहे हैं। बायीं तरफ से मंत्रीगण लगे हैं। पीछे से न्यायपालिका दम लगा के हाइशा बोल रही है और आगे से असामाजिक तत्व बस को पीछे ठेल रहे हैं। लोग सात दशकों से पुरजोर धक्का लगा रहे हैं पर गाडी साम्य अवस्था में है। गति में नहीं आती, इसलिए स्टार्ट नहीं होती। प्रजातंत्र की बस सिर्फ चर्रचूँ कर रही है। (“प्रजातंत्र की बस”) यह यथार्थ को चित्रित करता बेहतरीन शैली में तराशा गया एक सराहनीय व्यंग्य है।

दो टाँग वाली कुर्सी व्यंग्य लेख वर्तमान परिस्थितियों में एकदम सटीक है तथा यह व्यंग्य लेख अवसरवादी राजनीति पर गहरा प्रहार करता है। जिस कुर्सी पर आपको बैठना हो उसके लिए यदि कोई और उत्सुक दिखे तो अपना दावा ठोक दें। प्रतिद्वंद्वी को आप खुद नहीं ठोकें। अपने चार लोगों को इशारा कर दें। वे उसकी ठुकाई करेंगे और आपका जोरशोर से समर्थन भी। प्रतिद्वंद्वी समझ जाएगा कि वह कुर्सी सिर्फ आपके लिए बनी है। हर कुर्सी में सिंहासन बनने की निपुणता नहीं होती। कुछ लोग जो अपनी कुर्सी को नरमुंडों और मनुष्यरक्त की जैविक खाद देकर पोषित कर पाते हैं, वे अपनी कुर्सी को सिंहासन बना पाते हैं। (“दो टाँग वाली कुर्सी”)

भैंस की पूँछ”, पहले आप सुसाइड नोट लिख डालेंजैसे व्यंग्य धर्मपाल जैन के अलहदा अंदाज के परिचायक है। धर्मपाल महेन्द्र जैन के कहनपन का अंदाज अलग है। बिन बारूद की तीलीधड़ाधड़ व्यंग्य लिखने वालों पर कटाक्ष है। भैंस की पूँछ बहुत ही मजेदार और चुटीला व्यंग्य है। आप रसीलाजी को नहीं जानते तो पक्का सुरीलीजी को भी नहीं जानते होंगे। वे महान बनने के जुगाड़ में जी जान से लगे थे पर पैंदे से ऊपर उठ नहीं पा रहे थे। उन्हें पता था कि विदेश में रहकर महान बनना बहुत सरल है। हिंदी नाम की जो भैंस है बस उसको दोहना सीख जाएँ तो उनके घर में भी घीदूध की नदियाँ बह जाएँ। (“भैंस की पूँछ”) “पहले आप सुसाइड नोट लिख डालेंयथार्थ को चित्रित करता बेहतरीन शैली में तराशा गया एक सामयिक प्रभावशाली व्यंग्य है जो पुलिस की कार्यशैली पर भी सार्थक हस्तक्षेप करती है। व्यंग्यकार दृश्य चित्र खड़े करने में माहिर हैं। एक बार फिर चेक कर लें कि आप ने सुसाइड नोट लिखकर अपनी ऊपरी जेब में विधिवत रख दिया है। पुलिस की नजर का कोई भरोसा नहीं है। विटामिन एम खाया हो तो वे सुसाइड नोट पाताल में भी खोज सकते हैं। यदि उन्हें विटामिन का पर्याप्त डोज़ मिले तो वे आँखों के सामने पड़ा सुसाइड नोट भी नहीं देख पाते। (“पहले आप सुसाइड नोट लिख डालें)         

लाचार मरीज और वेंटिलेटर पर सरकारें एक बेहतरीन व्यंग्य रचना है, जिसमें लाचार मरीज़ों की मन:स्थिति, उनकी पीड़ा, उनकी मजबूरियों का यथार्थ चित्रण किया गया है और साथ ही सरकार की कार्यशैली का कच्चा चिट्ठा खोला गया है। इस व्यंग्य रचना में अस्पतालों की बदहाल स्थिति का पोस्टमार्टम किया गया है। यह व्यंग्य रचना हमारी चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोलती है। देश बीमार है। वेंटिलेटर मिल गया है पर उसका एडॉप्टर नहीं है। इसे अस्पताल की ऑक्सीजन लाइन से जोड़ें कैसे अधिकारियों का काम थोक में वेंटिलेटर खरीदना था, उन्होंने वह कर दिया। वेंटिलेटर आँकड़ों में दर्ज कर दिए। राजनेता गए, फीता काट कर बटन दबा आए। वे कोई तकनीकी आदमी तो थे नहीं कि जाँच करते कि वेंटिलेटर इंस्टाल हुआ या नहीं। टेक्निकल भर्ती की मांगे सचिवालयों के स्वास्थ्य विभागों में दबी पड़ी हैं। देश में बेरोजगारों की भीड़ है। (“लाचार मरीज और वेंटिलेटर पर सरकारें”) हम जीडीपी गिराने वालेरचना के माध्यम से लेखक ने सामाजिक विषमता / वर्ग विभेद पर करारा व्यंग्य किया है। आइंस्टीन का चुनावी फार्मूला माफिया तंत्र को उकेरती एक सशक्त व्यंग्य रचना है। इसे दस लोगों को फॉरवर्ड करें सोशल मीडिया पर गहरा तंज है। हाईकमान के शीश महल मेंव्यंग्य रचना में करारे पंच के साथ गहराई से वर्तमान सियासत पर तंज कसा गया है। संविधान को कुतरती आत्माएँराजनेताओं की यथार्थ स्थिति को उद्घाटित करती हुई एक उम्दा रचना है जिसमें राजनीतिज्ञ अपनी आत्मा को हाईकमान की तिजोरी में रखकर पद हथियाते हैं। फिर ये आत्माएँ संविधान को कुतरती हैं। वैशाली में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर एक रोचक रचना है जिसमें राजा को अमेरिका से मिले पोर्टेबल ऑक्सीजन कंसंट्रेटर गिफ्ट राजा से महारानी, महारानी से उसके प्रेमी सेनापति, सेनापति से सेनापति की प्रेयसी विपक्षी नेत्री, विपक्षी नेत्री से उसके प्रियतम एंकर, एंकर से वैशाली की नगरवधू और नगरवधू से वापस राजा के पास आ जात्ता है। डिमांड ज्यादा है, थाने कम रचना में व्यंग्यकार ने थानों की बिक्री को निविदाओं से जोड़कर अनूठा प्रयोग किया है। लेखक समाज में व्याप्त विसंगतियों को चुटीलेपन के साथ उजागर करते हैं। लॉकडाउन में दरबाररचना में लेखक के सरोकार स्पष्ट होते हैं। इस रचना को लेखक ने एक नाट्य के रूप में प्रस्तुत किया है। व्यंग्यकार ने लॉकडाउन के दौरान सरकारी कार्यप्रणाली पर गहरा प्रहार किया है। साठोत्तरी साहित्यकार का खुलासाऔर हिंदी साहित्य का कोरोना गाथाकालवर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर सही, सटीक सारगर्भित सार्थक हस्तक्षेप करती हुई व्यंग रचनाएं हैं।  

हम जीडीपी गिराने वाले”, “साठोत्तरी साहित्यकार का खुलासा”, “लॉकडाउन में दरबार”, “पशोपेश में हैं महालक्ष्मीजी”, माल को माल ही रहने दो, “हिंदी साहित्य का कोरोना गाथाकाल इत्यादि इस संग्रह की काफी उम्दा व्यंग्य रचनाएँ हैं। संग्रह की रचनाओं के विषयों में नयापन अनुभव होता है। संग्रह की विभिन्न रचनाओं की भाषा, विचार और अभिव्यक्ति की शैली वैविध्यतापूर्ण हैं। इस व्यंग्य संग्रह की भूमिका बहुत ही सारगर्भित रूप से वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री ज्ञान चतुर्वेदी ने लिखी है। व्यंग्यकार ने इस संग्रह में व्यवस्था में मौजूद हर वृत्ति पर कटाक्ष किए हैं। लेखक के पास सधा हुआ व्यंग्य कौशल है। धर्मपाल जैन की प्रत्येक व्यंग्य रचना पाठकों से संवाद करती है। चुटीली भाषा का प्रयोग इन व्यंग्य रचनाओं को प्रभावी बनाता है। व्यंगकार ने इन  व्यंग्य रचनाओं में चुटीलापन कलात्मकता के साथ पिरोया है। धर्मपाल जैन की व्यंग्य लिखने की एक अद्भुत शैली है जो पाठकों को रचना प्रवाह के साथ चलने पर विवश कर देती है। व्यंग्यकार ने अपने समय की विसंगतियों, मानवीय प्रवृतियों, विद्रूपताओं, विडम्बनाओं पर प्रहार सहजता एवं शालीनता से किया है। व्यंग्यकार धर्मपाल जैन के लेखन में पैनापन और मारक क्षमता अधिक है और साथ ही रचनाओं में ताजगी है। लेखक के व्यंग्य रचनाओं की मार बहुत गहराई तक जाती है। धर्मपाल जैन अपनी व्यंग्य रचनाओं में व्यवस्था की नकाब उतार देते हैं। लेखक की रचनाएँ यथास्थिति को बदलने की प्रेरणा भी देती है। आलोच्य कृति भीड़ और भेड़िए में कुल 52 व्यंग्य रचनाएँ हैं। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित 136 पृष्ठ का यह व्यंग्य संग्रह आपको कई विषयों पर सोचने के लिए मजबूर कर देता है। यह व्यंग्य संग्रह सिर्फ पठनीय ही नहीं है, संग्रहणीय भी है। आशा है यह व्यंग्य संग्रह पाठकों को काफी पसंद आएगा और साहित्य जगत में इस संग्रह का स्वागत होगा।

समीक्षा – श्री दीपक गिरकर

संपर्क – 28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोडइंदौर– 452016 

मोबाइल : 9425067036

मेल आईडी : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments