श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – सीढ़ियाँ
आती-जाती
रहती हैं पीढ़ियाँ,
जादुई होती हैं
उम्र की सीढ़ियाँ,
जैसे ही अगली
नज़र आती है,
पिछली तपाक से
विलुप्त हो जाती है,
आरोह की सतत
दृश्य संभावना में,
अवरोह की अदृश्य
आशंका खो जाती है,
जब फूलने लगे साँस,
नीचे अथाह अँधेरा हो,
पैर ऊपर उठाने को
बचा न साहस मेरा हो,
चलने-फिरने से भी
देह दूर भागती रहे,
पर भूख-प्यास तब भी
बिना नागा लगाती डेरा हो,
हे आयु के दाता! उससे
पहले प्रयाण करा देना,
अगले जन्मों के हिसाब में
बची हुई सीढ़ियाँ चढ़ा देना!
मैं जिया अपनी तरह,
मरुँ भी अपनी तरह,
आश्रित कराने से पहले
मुझे विलुप्त करा देना!
© संजय भारद्वाज
प्रातः 8:01 बजे, 21.4.19
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
[…] present an English Version of Shri Sanjay Bhardwaj’s Hindi poem “~ सीढ़ियां ~”. We extend our heartiest thanks to the learned author Captain Pravin Raghuvanshi Ji (who is […]