श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – वह लिखता रहा
‘सुनो, रेकॉर्डतोड़ लाइक्स मिलें, इसके लिए क्या लिखा जाना चाहिए?’
…..वह लिखता रहा।
‘अश्लील और विवादास्पद लिखकर चर्चित होने का फॉर्मूला कॉमन हो चुका। रातोंरात (बद)नाम होने के लिए क्या लिखना चाहिए?’
…..वह लिखता रहा।
‘अमां क्लासिक और स्तरीय लेखन से किसीका पेट भरा है आज तक? तुम तो यह बताओ कि पुरस्कार पाने के लिए क्या लिखना चाहिए?’
…..वह लिखता रहा।
‘चलो छोड़ो, पुरस्कार न सही, यही बता दो कि कोई सूखा सम्मान पाने की जुगत के लिए क्या लिखना चाहिए?’
…..वह लिखता रहा।
वह लिखता रहा हर साँस के साथ, वह लिखता रहा हर उच्छवास के साथ। उसने न लाइक्स के लिए लिखा, न चर्चित होने के लिए लिखा। कलम न पुरस्कार के लिए उठी, न सम्मान की जुगत में झुकी। उसने न धर्म के लिए लिखा, न अर्थ के लिए, न काम के लिए, न मोक्ष के लिए।
उसका लिखना, उसका जीना था। उसका जीना, उसका लिखना था। वह जीता रहा, वह लिखता रहा..!
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
आषाढ़ मास साधना- यह साधना आषाढ़ प्रतिपदा तदनुसार सोमवार 5 जून से आरम्भ होकर देवशयनी एकादशी गुरुवार 29 जून तक चलेगी।
इस साधना में इस बार इस मंत्र का जप करना है – ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈