श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – अनवरत 1515 दिन – ‘आकलन’
ई-अभिव्यक्ति परिवार आदरणीय श्री संजय भारद्वाज जी के 1515 दिनों के अनवरत साहित्यिक सहयोग के लिए हृदय से आभारी है। माँ सरस्वती से प्रार्थना है सभी साहित्यकार मित्रों के सहयोग से यह साहित्यिक यात्रा अनवरत चलती रहे। श्री संजय भारद्वाज जी के शब्दों में –
नमस्कार मित्रो!
विगत अनेक वर्षों से लेखन के माध्यम से अभिव्यक्त होता रहा हूँ, अपने आप से मिलने का सविनय प्रयास करता रहा हूँ। इसी प्रक्रिया में 4 वर्ष से अधिक समय से दैनिक लेखन और दैनिक प्रकाशन का क्रम भी चल रहा है।
इस क्रम को आज 1515 दिन पूरे हुए। इसका माध्यम बने सभी समाचारपत्र-पत्रिकाओं, विशेषकर ‘ई-अभिव्यक्ति’ का हृदय से धन्यवाद।
इस यात्रा को आप पाठकों से कल्पनातीत प्रेम और समर्थन मिला है। अनेक बार रचना साझा करने में देर होने पर कई पाठकों के संदेश मिलते हैं कि रचना की प्रतीक्षा है। आप सबकी इस आत्मीयता के प्रति नतमस्तक हूँ।
इस यात्रा में आप सबकी प्रतिक्रियाएँ लेखन के लिए संबल का काम करती रही हैं। मेरा सदा प्रयास रहा कि हर पाठक की प्रतिक्रिया पर आभार व्यक्त कर सकूँ।
आत्मीय जनो, कल श्री गणेश चतुर्थी है। कल से कुछ नये काम हाथ में लेना चाहता हूँ। मेरी कुछ पुस्तकें लम्बे समय से प्रकाशन की बाट जोह रही हैं। इस कार्य को पूरा करना चाहता हूँ। एक विषय विशेष का अध्ययन करने का मन है। उसके लिए समय देना चाहता हूँ। मन तो बहुत कुछ करने का है, थोड़ा कुछ भी कर पाऊँगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा। प्रयास करना ही मनुष्य के हाथ में है, सो प्रयास करना चाहता हूँ।
मित्रो! हर काम अपने हिस्से का समय लेता है। समय का संतुलन साधने हेतु कल से मेरे लेखन का लिंक मेरे स्टेटस/ फेसबुक/ इंस्टाग्राम पर उपलब्ध रहेगा। पाठक मित्रों से करबद्ध प्रार्थना है कि कृपया इसे सम्बंधित लिंक पर जाकर पढ़ें। साप्ताहिक ‘संजय उवाच’ यथावत समूह पर साझा करता रहूँगा। कभी कुछ विशेष बन पड़ा तो उसे भी आप सबके साथ साझा करने का मोह भी बना रहेगा।
विश्वास है कि आप सभी पाठकों एवं रचनाकार मित्रों का प्रेम यथावत मिलता रहेगा। आप सबके प्रति कृतज्ञ हूँ, सदा रहूँगा।
संजय भारद्वाज
(…लिखता हूँ, सो जीता हूँ)
आकलन
जब कभी
अपने आप से मिलता हूँ,
एक नयी रचना रचता हूँ;
आज पीछे मुड़कर देखा,
अपनी रचनाओं को गिना, तो लगा,
इतना लंबा जीवन जी चुका हूँ,
कितनी कम बार
अपने आप से मिल सका हूँ..!
(कवितासंग्रह ‘यों ही’ से)
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
माधव साधना सम्पन्न हुई। आपको अगली साधना की जानकारी शीघ्र दी जाएगी।
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈