श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – कविता
नाज़ुक होती हैं
कविता की अँगुलियाँ
नरम होती हैं
कविता की हथेलियाँ
स्निग्ध होते हैं पाँव
जैसे केसर-मलाई का लेप
दूधिया तलवे
जो मखमली दूब पर चलें
तो दूब की छाप
उन पर उभर आए,
यों समझो,
एकदम नाज़ुक
एकदम मुलायम
एकदम नरम
सुडौल
भरी-भरी देह वाली
बेहद सुंदर
बलखाती औरत-सी
होती है कविता;
प्रौढ़ शिक्षा वर्ग में
शिक्षक महोदय पढ़ा रहे थे,
वो मजदूर औरत
चुपचाप देखती रही
अपनी खुरदुरी हथेलियाँ
कटी-छिली अँगुलियाँ
मिट्टी सने पैर
बिवाइयों भरे तलवे
बेडौल
जगह-जगह से पिचकी-सी देह
उसका जी हुआ
उठे और चिल्लाकर कहे-
नहीं माटसाब!
कविता ऐसी भी होती है!
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
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≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈