श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – नींद ? ?

आँख में गहरी नींद बसती थी। फिर नींद में अबोध सपनों ने दखल दिया। आगे सपने वयस्क हो चले। वयस्कता भी कब तक टिकती! जल्दी ही सपनों से मन उचाट हो गया और चिंताओं से नींद प्रायः उचटने लगी।

समय के साथ चिंताएँ भी रूप बदलती गईं और आँखों में खालीपन भरने लगा। खालीपन के चलते नींद लगभग बेदखल हो गई। दिन फिरे और बेदखल नींद शनैः-शनैः उल्टे पाँव लौटने लगी। रात में कम, दिन में अधिक आधिपत्य जमाने लगी।

फिर एक दिन, रात-दिन की परिधि को समेटकर नींद, आँखों के साथ पूरी देह में गहरे उतर गई।

समय साक्षी है, यह नींद इतनी गहरी होती है कि इसमें जो गया, कभी उठा नहीं।

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆ 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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☆ आपदां अपहर्तारं ☆

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संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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