श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – औरत
(एस.एन.डी.टी.महिला विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गई कविता ‘औरत’)
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मैंने देखी-
बालकनी की रेलिंग पर लटकी
खूबसूरती के नए एंगल बनाती औरत;
मैंने देखी-
धोबीघाट पर पानी की लय के साथ
यौवन निचोड़ती औरत;
मैंने देखी-
कच्ची रस्सी पर संतुलन साधती
सॉंचेदार, खट्टी-मीठी औरत;
मैंने देखी-
चूल्हे की आँच में
माथे पर चमकते मोती संवारती औरत;
मैंने देखी-
फलों की टोकरी उठाये
सौंदर्य के प्रतिमान लुटाती औरत।
अलग-अलग किस्से
अलग-अलग चर्चे
औरत के लिए राग एकता के साथ
सबने सचमुच देखी थी ऐसी औरत,
बस नहीं दिखी थी उनको-
रेलिंग पर लटककर
छत बुहारती औरत;
धोबीघाट पर मोगरी के बल पर
कपड़े फटकारती औरत;
रस्सी पर खड़े हो अपने बच्चों की
भूख को ललकारती औरत;
गूँधती-बेलती-पकाती
पसीने से झिजती
पर रोटी खिलाती औरत;
सिर पर उठाकर बोझ
गृहस्थी का जिम्मा बॅंटाती औरत;
शायद-
हाथी और अंधों की कहानी की तर्ज पर
सबने देखी अपनी सुविधा से
थोड़ी-थोड़ी औरत;
अफसोस-
किसीने नहीं देखी एक बार में
पूरी की पूरी औरत!
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© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
नवरात्रि साधना कल सम्पन्न हो गई
आज विजयादशमी के निमित्त रामरक्षास्तोत्रम् के पाठ करेंगे
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈