श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – कोरोना वायरस और हम- 3☆
घर बैठे क्या करें?
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देश ने 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ्यू का जिस तरह समर्थन किया वह अभूतपूर्व था। इस समय भारत के कुछ राज्यों में लॉकडाउन है। इसके सिवा देश के विभिन्न राज्यों के 76 जिलों में भी लॉकडाउन घोषित हो चुका है। पंजाब ने लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने के लिए कर्फ्यू लगा दिया है। महाराष्ट्र के 10 जिलों में लॉकडाउन है पर पूरे प्रदेश में निषेधाज्ञा लगा दी गई है। यह लेख पोस्ट करते समय महाराष्ट्र में भी कर्फ्यू की घोषणा कर दी गई है।
सरकार और प्रशासन के स्तर पर जो हो सकता है, वह किया जा रहा है। आज भारत के मुख्य न्यायाधीश ने भी भारत सरकार की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही हमारे प्रधानमंत्री की पीठ थपथपा चुका है।
आज चर्चा हमारे स्वानुशासन और घर की व्यवस्था की। दौड़ती-भागती ज़िंदगी के हम ऐसे आदी हो चुके हैं कि अब घर पर रुकने की मानसिकता ही नहीं रही। इस समय घर पर रहना हम सब का सबसे बड़ा धर्म है पर घर में क्या करें, यह भी हम सबके सामने सबसे बड़ा प्रश्न है।
परिजनों के घर पर होने के कारण इस समय घर की महिलाओं का वर्कलोड बेतहाशा बढ़ा हुआ है। अपेक्षित है कि सभी परिजन विशेषकर पुरुष सदस्य घर के सभी कामों में बराबरी से नहीं अपितु ज्यादा से ज्यादा हाथ बटाएँ। घर के हर सदस्य का साथ मिलेगा तो घर की स्त्री पर काम का बोझ तो कम होगा ही, साथ ही वह परिजनों के घर में रहने का सही सुख भी उठा सकेगी।
टीवी और स्मार्टफोन तक खुद को सीमित रखने के कारण घर के सदस्यों में आपसी संवाद निरंतर कम हो रहा है। इसका दुष्परिणाम पुणे में देखने को मिला। घर से बाहर खेलने जाने पर मना किए जाने के कारण 11 वर्षीय बच्चे ने आत्महत्या का प्रयास किया। यह सुन्न कर देने वाली घटना है। बेटा या बेटी जिस भी आयु के हैं, प्रयास करके हम उसी आयु में लौटें और उनके मित्र बनें। गैजेट्स एकमात्र विकल्प नहीं हैं। मोक्षपटम/ शतरंज, लूडो, सांप-सीढ़ी, शब्दसंपदा, व्यापार जैसे अनेक बैठे खेल हम बाल-गोपालों और अन्य सदस्यों के साथ खेल सकते हैं। हमें अपने बचपन के खेल याद करने चाहिएँ। इससे हमारा बचपन लौटेगा और हमारे बच्चों का बचपन खिल उठेगा।
हम इस समय घर में आर्ट, क्राफ्ट से जुड़ी चीज़ें बनाना सीख सकते हैं और बना सकते हैं।ललित कलाओं से सम्बंधित लोगों के लिए यह आपाधापी से परे शांत समय है। इसका सृजनात्मक उपयोग कीजिए।
घर पर समय बिताना इस समय हमारी अनिवार्य आवश्यकता है। अलबत्ता इस समय को ‘क्वालिटी टाइम’ में बदल पाना हमारी प्रगल्भता होगी। क्वालिटी टाइम के लिए पुस्तकें पढ़ना और संगीत सुनना दो उत्कृष्ट साधन हैं।
मित्रों से अनुरोध है कि आप अपना समय कैसे बिता रहे हैं, इसे शेयर करें। इससे अनेक लोगों का मार्गदर्शन होगा।
करोना से लड़ना है हर पल। सार्थक बिताना है हर पल। शुभकामनाएँ।
© संजय भारद्वाज, पुणे
4:57 बजे, 23.3.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603