श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – जादू ☆
(एक रचना पर एक पाठक की प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रियास्वरूप उपजी कविता)
अनुभूति वयस्क तो हुई
पर कथन से लजाती रही,
आत्मसात तो किया
किंतु बाँचे जाने से
कागज़ मुकरता रहा,
मुझसे छूटते गये
पन्ने कोरे के कोरे,
पढ़ने वालों की
आँख का जादू
मेरे नाम से
जाने क्या-क्या
पढ़ता रहा!
# कृपया घर में ही रहें। स्वस्थ रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
प्रात: 9:19 बजे, 25.7.2018
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
यह जादू ही किसी दिन निश्चित रंग लाएगा।आपको पढ़ने वाले कोरे कागज़ के भाव भी पढ़ लेंगे !बस दृष्टि चाहिए।
वयस्क अभिव्यक्ति का कागज पर न उतर पाने और पाठक का कोरे कागज में अपने तरीके से पढ़ना;-एक अद्भुत अभिव्यक्ति।??