श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – आभा ☆
दैदीप्यमान रहा
मुखपृष्ठ पर कभी,
फिर भीतरी पृष्ठों पर
उद्घाटित हुआ,
मलपृष्ठ पर
प्रभासित है इन दिनों..,
इति में आदि की छाया
प्रतिबिम्बित होती है,
उद्भव और अवसान की
अपनी आभा होती है!
# घर में रहें, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
प्रात: 11:07 बजे, 25.4.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
इति में आदि की छाया की कल्पना अति सुंदर!
धन्यवाद आदरणीय।
कहा गया है जन्म में मृत्यु के बीज होते हैं…'” अथ से आरंभ अंत तो होना ही है किंतु ठहरो तो ज़रा अनंत को पा लेने दो..सुनो तो समय ठहरो तो ज़रा..”
…”उद्भव और अवसान की अपनी आभा होती है”
धन्यवाद आदरणीय।