श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆  चुप्पियाँ-7

चुप रहो…

…क्यों?

…देर तक

तुम्हारी चुप्पी

सुनना चाहता हूँ!

 कृपया घर में रहें, सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

( कविता-संग्रह *चुप्पियाँ* से।)
( 2.9.18, प्रातः 6:59 बजे )

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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माया कटारा

चुप रहकर शायद अपने मन के विचारों को रचनाकार अधिक सुन सकता है ।
चुप्पी के दौरान रचनाकार की भावनात्मक एकरूपता की अनुभूति -क्षमता इतनी बढ़ती है कि शब्द सुगंधित होने लगते हैं। भाव और भाषा का तादात्म्य हृदय के रंगों और रसों को गरिमा प्रदान कर स्फुटित होने को बाध्य होता है । सृजन अधिक गहन और प्रभावशाली बन जाता है ।संक्षेप में रचनाकार को अपनी इस चुप्पी-शक्ति का ज्ञान है ।
सम्मान अभिवादन …….

Sanjay k Bhardwaj

विस्तृत प्रतिक्रिया हेतु आपका हृदय से आभार।

Sanjay k Bhardwaj

अभिभूत करनेवाली प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद आदरणीय।

Rita Singh

रचनाकार बहुत ही संवेदनशील है जो चुप्पी में भी अनकहे शब्दों को सुन लेने की क्षमता रखता है। बहुत खूब!

Sanjay k Bhardwaj

हृदय से आपका आभार।

अलका अग्रवाल

सुननेवाला चुप्पी रखकर ही रचनाकार के अबोले शब्दों को पढ़ने की महती क्षमता रखता है।।

Sanjay k Bhardwaj

हृदय से आपका आभार।