(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ-13 ☆
चुपचाप उतरता रहा
दुनिया का चुप
मेरे भीतर..,
मेरी कलम चुपचाप
चुप्पी लिखती रही।
# सजग रहें, स्वस्थ रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
(प्रातः 9:26 बजे, 2.9.18)
( कवितासंग्रह *चुप्पियाँ* से।)
कलम चिरंजीवी हो…… आमीन
अच्छी रचना
दुनिया की चुप्पी को चुपचाप कागज पर लिखना बहुत खूब संजय जी।
दुनिया का चुप क़लमकार के भीतर उतरता गया, उसकी क़लम चुपचाप उन
चुप्पियों को लिखती गईं-
तेरहवीं चुप्पियों का सृजन भीतर से आया वह मानवी संवेदनाओं का अद्भुत आर्तनाद था जो विश्व वेदना को मूर्त रूप दे गया – नमन