(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ त्रिलोक ☆
सुर,
असुर,
भूसुर,
एक मूल शब्द,
दो उपसर्ग,
मिलकर
तीन लोक रचते हैं,
सुर दिखने की चाह
असुर होने की राह,
भूसुर में
तीन लोक बसते हैं।
# सजग रहें, सतर्क रहें, स्वस्थ रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
(प्रातः 6:24 बजे, 25.5.19)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
सत्य कथन
मनुष्य सुर तो कभी न बन सका ,हाँ असुरों की कमी नहीं।
सुंदर अभिव्यक्ति
सच है-इस भूसुर में तीनों लोक बसते हैं।सुंदर अभिव्यक्ति।
अच्छा प्रयास
गूढ़ यथार्थ युक्त रचना ,
अभिवादन अभिनंदन आदरणीय