(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ विकल्प ☆
यात्रा में संचित
होते जाते हैं शून्य,
कभी छोटे, कभी विशाल,
कभी स्मित, कभी विकराल..,
विकल्प लागू होते हैं
सिक्के के दो पहलू होते हैं-
सारे शून्य मिलकर
ब्लैकहोल हो जाएँ
और गड़प जाएँ अस्तित्व
या मथे जा सकें
सभी निर्वात एकसाथ
पाये गर्भाधान नव कल्पित,
स्मरण रहे-
शून्य मथने से ही
उमगा था ब्रह्मांड
और सिरजा था
ब्रह्मा का अस्तित्व,
आदि या इति
स्रष्टा या सृष्टि
अपना निर्णय, अपने हाथ
अपना अस्तित्व, अपने साथ,
समझ रहे हो न मनुज..!
© संजय भारद्वाज, पुणे
( प्रात: 8.44 बजे, 12 जून 2019)
#हरेक के भीतर बसे ब्रह्मा को नमन। आपका दिन सार्थक हो।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
शून्य मथने से ही उमगा था ब्रह्मांड….सत्य ! शून्य ही आदि ..शून्य ही अंत !! साधो⚘
अच्छी रचना
शून्य मथने से ही उमगा था ब्रह्मांड और सिरजा था ब्रह्मा का अस्तित्व-बहुत सुंदर व सही बात कही संजय जी।
सारे शून्य मिलकर
ब्लैकहोल हो जाएँ
और गड़प जाएँ अस्तित्व
या मथे जा सकें
सभी निर्वात एकसाथ
पाये गर्भाधान नव कल्पित*
सत्य है। नवीन निष्कलंक सृष्टि के लिए सभी शून्यों का ब्लैक होल में परिवर्तित हो जाना ही आवश्यक है।