(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ-14 ☆
आदमी
बोलता रहा ताउम्र,
दुनिया ने
अबोला कर लिया,
हमेशा के लिए
चुप हो गया आदमी,
दुनिया आदमी पर
बतिया रही है!
© संजय भारद्वाज
प्रातः 9:44 बजे, 2.9.2018
( कवितासंग्रह *चुप्पियाँ* )
# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।
मोबाइल– 9890122603
अभिव्यक्ति के लिए चाहिए स्थान और सुनने वाले कान वरना जाने के बाद चर्चा भी हो तो क्या!!!
अच्छी रचना
आदमी के अबोला होते ही वो चर्चा का विषय हो गया।सुंदर अभिव्यक्ति।
यह कैसी विडंबना है आदमी की- न उसका बोलना पसंद न अबोला !
दुनिया के हमेशा के लिए अबोला कर लेने के बाद आदमी चुप तो हो गया , परिस्थिति बदल गई और उसके चुप रहने पर अब दुनिया उस आदमी पर बतिया रही है – यही जीवन की रीत है ।?
विडंबना दुनिया की…????????