श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  ☆ अजातशत्रु 

आँखों में आँखें डालकर

धमकी भरे स्वर में

उसने पूछा,

तुमसे मिलने आ जाऊँ?

उसकी बिखरी लटें समेटते

दुलार से मैंने कहा,

अपने चाहनेवाले से

इस तरह कभी

पेश आता है भला कोई?

जाने क्या असर हुआ

शब्दों की अमरता का,

वह छिटक कर दूर हो गई,

मेरी नश्वरता

प्रतीक्षा करती रही,

उधर मुझ पर रीझी मृत्यु

मेरे लिए जीवन की

दुआ करती रही..!

 

©  संजय भारद्वाज

(9.48 बजे, 14 जून 2019)

# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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Dr. R. K. Thakur

बढ़िया
(डॉ. राजेश, नैनपुर, म. प्र.)

Shyam Khaparde

अच्छी रचना

अलका अग्रवाल

प्रेम से मृत्यु को भी मोड़ा जा सकता है फिर मानव की क्या बिसात है।

माया कटारा

मुझ पर रीझी मृत्यु मेरे लिए जीवन की दुआ करती रही- सृजन की कलात्मकता निखार पर है -अभिनंदन