(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ परिक्रमा ☆
मैंने जब कभी
छलकानी चाही
वेदना की एक बूँद,
विरोध में उसने
उँड़ेल दिया
खारा सागर..,
विवश बूँद
जा गिरी सीप में
और कालातीत हो गई,
शनैः-शनै
अनगिनत मोतियों की
एक माला बन गई,
इस माला में
छिपी है
मेरे जीवन की परिक्रमा!
© संजय भारद्वाज
( कविता संग्रह, ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)
# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।
मोबाइल– 9890122603
सुंदर अभिव्यक्ति, खारे जल से बने मोती की माला और जीवन की परिक्रमा क्या ही सुंदर और अद्भुत दृष्टांत है।?????????????