श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ एकाक्षी ☆
एकाक्षी होना चाहता हूँ,
आवश्यक नहीं
एक आँख बंद कर लूँ,
वांछित है, दोनों में
समत्व विकसित कर लूँ!
© संजय भारद्वाज
10 अगस्त 17, संध्या 7.10
#आपका दिन सार्थक हो।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
समत्व की अनुपम परिकल्पना!??
एकाक्षी = सभभाव .. इसे पैदा करने की प्रक्रिया में रचनाकार ऐसा लगा हुआ है कि दूसरी आँख बंद कर एक ही आँख से ,समान दृष्टि से देखना चाहता है – सबको एक आँख से देखने का भाव वंदनीय है – कोई भेदभाव नहीं- रचनाकार के इस भाव को प्रणाम
वाह, बहुत सुंदर कविता। एकाक्षी का समत्व है। साधु।