श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ – 16 ☆
…कुछ कहो
तुम्हारी चुप्पी
बरदाश्त नहीं होती,
मैंने कोरा कागज़
मोड़कर थमा दिया,
..पढ़ लो, सारा कुछ
इस पर लिख दिया है,
ज़िंदगी भी
एक करवट ले चुकी,
उसका बाँचना
बदस्तूर जारी है,
सोचता हूँ
इतना ज़्यादा तो
नहीं लिखा था मैंने!
© संजय भारद्वाज
(2.9.2018, 12:25 बजे)
#आपका दिन सार्थक हो।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
कोरा कागज़ पढ़नेवाले स्वयं भी रचनाकार होगा जो अलिखित भी पढ़ ले।
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
कोरा कागज को पढ़ पाने की असीमित संभावनाओं ने पाठक को पढ़ने का असीमित खजाना दे दिया।बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति।