श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ समझ समझकर.. ☆
प्रातः भ्रमण कर रहा हूँ। देखता हूँ कि लगभग दस वर्षीय एक बालक साइकिल चला रहा है। पीछे से उसी की आयु की एक बिटिया बहुत गति से साइकिल चलाते आई। उसे आवाज़ देकर बोली, ‘देख, मैं तेरे से आगे!’ इतनी-सी आयु के लड़के के ‘मेल ईगो’ को ठेस पहुँची। ‘..मुझे चैलेंज?… तू मुझसे आगे?’ बिटिया ने उतने ही आत्मविश्वास से कहा, ‘हाँ, मैं तुझसे आगे।’ लड़के ने साइकिल की गति बढ़ाई,.. और बढ़ाई..और बढ़ाई पर बिटिया किसी हवाई परी-सी.., ये गई, वो गई। जहाँ तक मैं देख पाया, बिटिया आगे ही नहीं है बल्कि उसके और लड़के के बीच का अंतर भी निरंतर बढ़ाती जा रही है। बहुत आगे निकल चुकी है वह।
कर्मनिष्ठा, निरंतर अभ्यास और परिश्रम से लड़कियाँ लगभग हर क्षेत्र में आगे निकल चुकी हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था लड़के का विलोम लड़की पढ़ाती है। लड़का और लड़की, स्त्री और पुरुष विलोम नहीं अपितु पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा। महादेव यूँ ही अर्द्धनारीश्वर नहीं कहलाए। कठिनाई है कि फुरसत किसे है आँखें खोलने की।
कोई और आँखें खोले, न खोले, विवाह की वेदी पर लड़की की तुला में दहेज का बाट रखकर संतुलन(!) साधनेवाले अवश्य जाग जाएँ। आँखें खोलें, मानसिकता बदलें, पूरक का अर्थ समझें अन्यथा लड़कों की तुला में दहेज का बाट रखने को रोक नहीं सकेंगे।
समझ समझकर समझ को समझो।…भाई लोग, क्या समझे!
© संजय भारद्वाज
प्रात: 7:43 बजे, 3.9.2020
मोबाइल– 9890122603
अच्छी रचना
आज जब लड़का लड़की बराबर से हर क्षेत्र में काम कर रहे हैं फिर दहेज प्रथा कआ प्रश्न ही नहीं उठना चाहिए।