श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ आँख …(3) ☆
दीवार पर
जो उभरता है
मुझे, तुम्हें
चित्र अलग कैसे
दिखता है..?
देखने, मिटाने का
अपना आयाम,
अपनी रेखाएँ
खींचता है…,
दीवार पर नहीं,
आँख में चित्र
बसता है…!
हर आयाम देखने में आँख सक्षम हो।…शुभ प्रभात
© संजय भारद्वाज
प्रात: 5:17, 3.10.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सच है, आँखों में ही चित्र बसते हैं तभी न दृष्टि शब्द बना है।
सुंदर अभिव्यक्ति!
आँखों से श्रेष्ठ कोई कैमरा नहीं होता! इनकी गुणवत्ता..मानवीय संवेदनाओं के लेंस किसी अन्य कैमरें में आज तक बिल्ट नहीं किए जा सके हैं … सुंदर रचना।????
छबि तो अंतर्नेत्रो में बसती है जो कभी हृदय में उतर गई तो कभी मिटती नही ,बाहरी नेत्रों देखी गई छबि बनती बिगड़ती रहती है रचनाकार को बहुत बहुत बधाई उत्कृष्ट रचना धर्मिता के लिए