श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ अंकुर ☆
छिन्न-भिन्न कर दिया
अस्तित्व तुम्हारा,
फिर भी
तुम्हारी हिम्मत
टूटती क्यों नहीं,
आस मिटती
क्यों नहीं..?
झल्लाकर पूछा
कुटिल स्थितियों ने…,
मैं अपलक निहारता रहा
ध्वस्त कर दी गई
इमारत के मलबे से
फूटते अंकुर को…,
कुटिलता मुरझा गई,
स्थितियाँ खिसिया गईं!
© संजय भारद्वाज
4.33 दोपहर,17.11.2020
मोबाइल– 9890122603
उत्तम कथा!अभिनंदन!ss