श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि –अक्षर ☆
उद्भूत भावनाएँ,
अबोध संभावनाएँ,
परिस्थितिवश
थम जाती हैं,
कुछ देर के लिए
जम जाती हैं,
दुख, आक्रोश
अपने दाह से तपते हैं,
मन की भट्टी में
अपनी आँच पर पकते हैं,
लोहे-सा पिघलते हैं,
लावे-सा उफनते हैं,
आकार, कहन लिए
कागज़ पर उतरते हैं,
भावनाओं का संभूता
चक्र पूरा होता है,
साझा किए बिना
उत्कर्ष अधूरा होता है,
सुनो मित्र!
अभिव्यक्ति का कभी
मरण नहीं होता,
अक्षर का कभी
क्षरण नहीं होता।
© संजय भारद्वाज
(24.12.18, रात्रि 11:07बजे )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
बहुत खूब और सही , अभिव्यक्ति अमर है।अभिव्यक्ति ही अभिव्यक्ति को जन्म भी देती है।
अभिव्यक्ति को साझा किये बगैर उत्कर्ष अधूरा है।अभिव्यक्ति कभी नहीं मरती और न कभी अक्षर का क्षरण होता है।अक्षरशः सत्य है।
न अभिव्यक्ति का मरण
न अक्षर का क्षरण – निः संदेह अमरत्व को प्राप्त हुई हैं रचनाकार की रचनाएँ ……