श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – न्यूक्लिअर चेन
वे देख-सुन रहे हैं
अपने बोए बमों का विस्फोट,
अणु के परमाणु में होते
विखंडन पर उत्सव मना रहे हैं,
मैं निहार रहा हूँ
परमाणु के विघटन से उपजे
इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन,
आशान्वित हूँ हर न्यूक्लियस से
जिसमें छिपी है
अनगिनत अणु और
असंख्य परमाणु की
शाश्वत संभावनाएँ,
हर क्षुद्र विनाश
विराट सृजन बोता है,
शकुनि की आँख और
संजय की दृष्टि में
यही अंतर होता है।
© संजय भारद्वाज
(कवितासंग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
सच है, हर न्यूक्लियस में असंख्य अणुओं और परमाणुओं की संभावनाये छुपी हैं। कुछ उससे विनाश की संभावनायें ढूँढते हैं तो दूसरे उससे सृजन की।अप्रतिम अभिव्यक्ति।
रचनाकार की दृष्टि में और शकुनि की दृष्टि में स्वभावगत अंतर स्वाभाविक है – सृष्टि नियमानुसार हर क्षुद्र विनाश विराट सृजन बोता है – अभिव्यक्ति की पराकाष्ठा ….
शानदार प्रस्तुति