श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – लघुकथा – एकदा नैमिषारण्ये
( 5 जून से आरम्भ पर्यावरण विमर्श की रचनाओं में आज चौथी रचना।)
सूत जी बोले, ‘नैमिषारण्य में एक सुंदर देश है..।’ श्रद्धालुओं के चेहरे पर उस सौंदर्य का वर्णन सुनने की उत्सुकता जगी।
‘उस देश के बारे में बताइये न प्रभु!’, सामूहिक स्वर में मनुहार थी।
‘इस देश में हर तरफ हरीतिमा है। देश का प्रत्येक नगर आकर्षक उद्यानों से सुशोभित है। यहाँ की नदियों में प्रवाहित होता सलिल अमृत-सा निर्मल और प्राणों को पुष्ट करने वाला है। यहाँ के निवासी नदियों को माता के रूप में पूजते हैं। उनकी आरती उतारते हैं। गौ को वे अपनी जननी के समान मान देते हैं। अपने स्वामित्व की आधी भूमि पर ही वे अलट-पलट कर कृषि करते हैं, शेष भूमि पशुओं के चरने के लिए छोड़ दी जाती है। यहाँ हरे वृक्षों की कटाई प्रतिबंधित है, उनकी रक्षा करने और महात्म्य सुनने का भी विधान है। पंचमहाभूतों की प्रतिष्ठा है। प्रकृति के घटकों में ही ईश्वर के दर्शन किये जाते हैं। स्वर्ग के सुख और देवता भी ईर्ष्या करें, ऐसा मनोरम है ये देश!’
कथा सुनाई जाती रही, पीढ़ियों तक श्रोता तृप्त होते रहे। कालांतर में अपने पूर्वजों से इस देश का वर्णन सुनने वाली नई पीढ़ी ने उत्सुकता से सूत जी से कहा, ‘ उस सुंदर देश की कथा सुनाइये न!’
सूत जी बोले, ‘नैमिषारण्य में एक सुंदर देश था..!’
#लक्ष्य की दिशा में आज एक कदम बढ़े। शुभ दिवस#
© संजय भारद्वाज
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
ओह! सच में अब कथा ही रह गई, मनुष्य ने स्वार्थ वश बस काटना ,नोचना, नष्ट करना ही सीखा है। सुंदर कथा।
हृदय से आभार।
अद्भुत कथा वाचक को नमन – गहन अर्थ : कथन के लिए रह गई है केवल कथा , एकदा नैमिषारण्ये…….
हृदय से आभार।