श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – लघुकथा – सृजन
जल शांत था। उसके बहाव में आनंदित ठहराव था। स्वच्छ, निरभ्र जल और दृश्यमान तल। यह निरभ्रता उसकी पूँजी थी, यह पारदर्शिता उसकी उपलब्धि थी।
एकाएक कुछ कंकड़ पानी में आ गिरे। अपेक्षाकृत बड़े आकार के कुछ पत्थरों ने भी उनका साथ दिया। हलचल मची। असीम पीड़ा हुई। लहरें उठीं। लहरों से मंथन हुआ। मंथन से सृजन हुआ।
कहते हैं, उसकी रचनाओं में लहरों पर खेलता प्रवाह है। पाठक उसकी रचनाओं के प्रशंसक हैं और वह कंकड़-पत्थर फेंकनेवाले हाथों के प्रति नतमस्तक है।
आपका दिन सार्थक हो
© संजय भारद्वाज
( 1.9.2019, प्रातः 4:35 बजे।)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
गहनशीलता का दर्पण है , सृजन पूर्व घटित सृजनशीलता का अपूर्व चित्र रेखांकित है – बिन पीड़ा कहाँ होता है सृजन ? सत्याभास …..
कंकड़ ,पत्थर फेंकनेवालों की दी हुई पीड़ा से उत्पन्न सुंदर, सार्थक सृजन।अति सुंदर ।